लेखक: भंवर मेघवंशी
विश्वप्रसिद्ध लेखक पाउलो कोल्हो की कालजयी कृति ‘अल्केमिस्ट’ के आगे की कहानी . . .
फातिमा की याद के अहसास ने लड़के को भौतिक खजानो के प्रति एक अजीब सी विरक्ति से भर दिया, उसे एक ही क्षण में तिजोरी के भीतर रखे बेशकीमती हीरे, माणक, पन्ने जैसे जवाहरात तथा सोने की मोहरें और उरीम-थुरीम नामक पारस पत्थर भी पराये लगने लगे, उसे लगा कि उसे तो आत्मा का खजाना ढूंढना था, उसे तो अपनी प्रेमिका फातिमा के घने काले कुन्तलों की छांव और बांहों का सहारा पाना था, वह तो प्यार के पिरामिडों में फातिमा की हंसी और चुम्बनों का खजाना चाहता था, क्या वह इन सोने चांदी और रत्नजडि़त आभूषणों को पाकर खुश हो जायेगा ? उसी पल लड़के की आत्मा को सांसारिक माया की निस्सारता ने ढांप लिया, अब उसके एक तरफ एक भौतिक खजाना था जिसे उसने पूरा रेगिस्तान पार करके ढूंढा था, जिसके लिये उसे अपनी प्रिय भेड़ें बेचनी पड़ी थी और जिसके बाद वह गड़रिया से मुसाफिर बन गया था, दूसरी तरफ रेगिस्तान में अनायास मिला एक ऐसा खजाना था, जो उसकी रूह में बस गया था, वह था फातिमा की आत्मा से एकाकार होने की अदम्य चाहत का खजाना . . .।
वह अपनी आत्मा का खजाना पाने को आतुर था, लड़के ने रेगिस्तान के उस इकलौते मठ में गूलर के पेड़ के नजदीक दुनिया के भौतिक खजाने के पास खड़े होकर पूरी ताकत से पुकारा -
‘‘फातिमा . . . . .’’
‘‘फातिमा . . . . .’’
मगर कोई प्रत्युत्तर नहीं था, फातिमा की तरफ जाती हुई हवाओं से लड़के ने विनती की कि जिस तरह उन्होंने उसे हवा में बदलने में मदद की थी, उसी तरह ऐ हवाओं, मेरा पैगाम मेरी फातिमा तक पहुंचा देना और कहना कि उसकी रूह का मालिक अपनी रूह के मालिक से मिलने निकल पड़ा है। लड़के ने फिर से पुकारा, या यों कह लीजिये कि विश्वात्मा को हाजिर नाजिरमान कर उसने दोहराया – ‘‘फातिमा, मैं आ रहा हूं . . .।’’
लेखक की शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक ‘‘अल्केमिस्ट: पूरब की ओर’’ का प्रारम्भिक अंश
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