Thursday, February 28, 2013

आप तो हमारे महाराज है !

यूं तो जिन्दगी बदस्तूर ठीक वैसे ही खिसकती जा रही है जैसे गुजिश्ता सालों में गुजरती रही मगर इस बार 38वें साल का उल्लंघन करते हुये सोचा गया कि एक यात्रा की जाये, जो बाहर से ज्यादा भीतर की हो।

24 फरवरी को मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले के लूनिया खेड़ी ग्राम में कबीर महोत्सव भी था। इस महोत्सव में जाने की दिली ख्वाहिश थी। सद्गुरू सैलानी साहेब के दीदार का मन तो कर ही रहा था तो यात्रा शुरू कर दी, कबीर महोत्सव में शिरकत करने और सद्गुरू के दीदार के लिए।

इस अंतरयात्रा पर जो सहयात्री बने, वे लोग परम मित्रों में शुमार होते है दोस्त, सखा, हमनवां, हमसफर, सहयोगी, साथी, मित्र, सर्वस्व। आन्दोलनों और संघर्षों के सहभागी सुख-दुःख के मीत, नितान्त अपने बंधु, बांधव। सामाजिक जीवन में जिनके बिना मैं ‘मैं’ नहीं बनता, ऐसे मित्रजनों के साथ मेवाड़ की धरती से चला काफिला मालवे की तरफ बढ़ा, नया गांव में अखिल भारतीय गाडि़या लौहार समाज कल्याण समिति के अध्यक्ष माधव सिंह सिसोदिया तथा बैरण के निवासी कबीरपंथी छोगजी के यहां चाय और चर्चा करते हुये पीपल्यामण्ड़ी पहुंचे, जहां पर वरिष्ठ समाजसेवी एवं मध्यप्रदेश शिक्षा विभाग के अधिकारी गोपाल जी के घर अतिशय प्रेमपूर्वक नैवेद्य ग्रहण किया, उन्होंने अत्यन्त स्नेह से भोजन करवाया। दिनेश जी गुरूजी भी वहीं थे, उन्हें जब ज्ञात हुआ कि हमारा रात्रि विश्राम उज्जैन होगा तो उन्होंने फूल सिंह जी पंवार को फोन कर दिया।


हम रात्रि 11 बजे उज्जैन पहुंचे, वहां फूल सिंह जी, उनकी पत्नि और पूरे परिवार ने हम सब मित्रों का इस्तकबाल किया।

गरमागरम चाय के साथ खूब सारी चर्चाएं हुई। समाज के मत मतान्तर पर बेहद रोचक चर्चा के बाद सो गए। प्रातः उठे और मक्सी के समीप स्थित लूनिया खेड़ी के लिये प्रस्थायित हुये।

ठीक 8 बजे पद्मविभूषण मंहत प्रहलाद सिंह जी टिपाणिया के गांव लूणिया खेड़ी में उनकी पैतृक कृषि भूमि में बने कबीर स्मारक पहुंच गये। आज यहां कबीर सांस्कृतिक चेतना यात्रा पहुंच रही है, जिसमें देश-विदेश से कई लोग शिरकत कर रहे है, दिन भर कबीर महोत्सव है। टिपाणिया जी से मुलाकात हुई, उन्होंने बताया कि कबीर स्मारक पर ध्वज पूजन के पश्चात सभी लोगों को मक्सी पहुंचना होगा, वहां कबीर सांस्कृतिक चेतना यात्रा पहुंचने वाली है, यात्रा में पधार रहे लोगों को स्वागत सत्कार किया जाएगा और फिर विशाल शोभायात्रा निकाली जाएगी जो मक्सी के मुख्य मार्गों से होती हुई लूनिया खेड़ी पहूंचेगी। हम लूनिया खेड़ी से पुनः मक्सी आ गए, वहां सर्किट हाउस पर पहुंची सांस्कृतिक चेतना यात्रा में आए लोगों का स्वागत किया गया। गुरू वन्दना के साथ ही शोभायात्रा का शुभारंभ किया गया। बैण्ड बाजों के साथ विशाल शोभायात्रा निकाली गई। टिपाणिया जी ने बैण्ड बाजों के साथ कबीर के भजन गाकर हरेक को मस्त कर दिया। शोभायात्रा में टिपाणिया जी, भूरा लाला मारवाड़ी सहित कई लोगों की मधुरवाणियां सुनने को मिली। निरन्तर 17 वर्षों से यह यात्रा निकल रही है, कबीर यात्रा, कबीर के शब्द, चारों तरफ कबीर ही कबीर, हमने इसमें शिरकत कर पाने को अपना सौभाग्य माना। लगा कि मक्सी के बाजार मंे कबीर लिये लुकाटी हाथ खड़ा है। साथी परशराम जी बंजारा, रतननाथ जी कालबेलिया, लखन जी सालवी, हीरजी तथा अनाड़नाथ जी भी खूब आनंदित हुये। हीरजी और रतनजी तो आनंनदातिरेक नाचे भी। वैसे नाचे तो हम भी, मगर मन ही मन। किसी ने शायद ही हमें नृत्यावस्था में पाया हो मगर हम ‘नाच उठ्यो मनमोर’ की स्थिति में रहे।


कबीर साहब की वाणियों से सरोबार होकर निकले तो पहुंचे मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित सैंधवा में। सैंधवा के शांति पैलेस में रात रूके। 25 फरवरी की प्रातः 7 बजे रवाना हुये टाक्या पानी के लिये, सद्गुरू सैलानी साहब के दीदार को। सैंधवा से बलवाड़ी जाते वक्त करीब 30 किलोमीटर के फासले पर यह आदिवासी गांव आता है। टाक्यापानी गांव के मध्य स्थित है संत श्री सैलानी सरकार की खानकाह। अजब बाबा की गजब लीला स्थली, देखदेख अचरच भयो की मनस्थिति में पहुंचे। यह सुनकर बेहोश होते-होते बचे कि बाबा साहब तो कल अपराह्न 3 बजे ही बुलढ़ाणा चले गये। अब कहां है पता नहीं, मुझे लगा कि सरकार नाराज है . . मुझ नाचीज से। कितनी तमन्ना थी कि 39वां जन्मदिन हुजूर के कदमों में गुजारूं मगर अब क्या करे, हुजरे के बाहर धोक लगाई, बोराणा वाले चांद भाई मिल गये, बोले दीदार की प्रबल इच्छा है तो गाड़ी दौड़ाओं और पहुंच जाओ बुलढ़ाणा, यहां से करीब 250 किलोमीटर होगा, उन्होंने कुछ मोबाइल नम्बर भी दे दिये, जिन पर सम्पर्क कर हम सरकार तक पहुंच सके।

इसी दौरान यह भी पता चला कि सरकार की जन्मस्थली अनसिंग (जिला-वाशिम-महाराष्ट्र) से भी 10-12 युवाओं की एक टोली आई है, वह भी सरकार के दीदार के लिए बुलढ़ाणा जा रही है। हमने उन्हें ‘हनीफ शाह तुम्हारे दीवाने आये है’ की धुन पर नाचते हुये गाते हुये देखा ही था, उनकी शिरनी (तर्बरूका) भी खाई थी, हमें प्रसन्नता हुई कि सरकार के गांव के लोगों के साथ जाने का मौका मिलेगा। हम साथ-साथ रवाना हुये। अभी हम 70-75 किलोमीटर का रास्ता तय कर पाये थे, यावल कस्बे के पास ही पहुंचे थे कि खबर मिली कि सरकार ने वापस टाक्या पानी का रूख कर लिया है। हम रूक गये राह पर ही, एक घण्टे लम्बे इंतजार के बाद सरकार की गाड़ी यावल के नदी किनारे वहां रूकी जहां हम लोग खड़े थे। मुझे रामदेव पीर के भक्त हरजीभाटी की वाणी का स्मरण हो आया - ‘हरजी ने हर मिल्या आड़े मार्ग आय’, हमें भी बीच राह मिल गये, सदगुरू।

सरकार के दीदार हो गए, उनसे 10 मिनट तक बातें हुई। वे बोलते रहे, हम वशीभूत हुये सुनते रहे ‘‘पांव जमाओं, रास्ता खोजो, चल पड़ो’’ जैसे सूत्र वाक्यों के साथ आध्यात्मिक ज्ञान की सैकड़ों बातें। फिर 75 किलोमीटर का वापसी का सफर सद्गुरू के साथ हुआ। यावल में नाश्ता, अड़ावदा में थोड़ा रूकना, चौपड़ा होते हुये काफिला बढ़ता ही गया, बलवाड़ी में दिलशेर भाई के मकान पर आपने मुकाम किया। हम फिर दीदार को पहुंचे, बाबजी ने पूछा - कहां से आये ? मैं बोला-भीम से, फिर पूछा-मार्ग में कहां मिले ? मैंनें बताया-यावल में, फिर बोले-क्या करते हो ? मैंने कहा-पत्रकार हूं, सरकार ने एक क्षण मेरी और देखा और ठहाके के साथ हंसते हुए कहा - आप तो हमारे महाराज है।

फिर इजाजत दी - चलो। बाकी साथी भी मिले, इजाजत ली, फिर चल पड़े सैंधवा के लिये, भोजनोपरान्त फिर से होटल शांति पैलेस के उसी कमरा नम्बर 114 में पहुंचे। लखनजी, हीरजी, अनाड़जी केक वगैरह लेकर आ गये, केक काटने से लेकर गुब्बारा फोड़ने तक का जुग-जुग जीओ का आशीष भरा ‘कारजक्रम’ सम्पन्न हुआ, अब कमल हासन की बहुचर्चित फिल्म ‘विश्वरूपम’ देखनी है, हीरजी ने खर्राटे लेने शुरू कर दिये है और दूसरी ओर चलचित्र पर हमारी दृष्टियां जमती जा रही है।

इस प्रकार सतपुड़ा की पहाडि़यों में निर्मल आदिवासियों और दण्डकारण्य क्षेत्र में 39वां बरस जिन्दगी का साक्षात सामने आ गया, स्वागत है भाई आपका भी।

26 फरवरी की सुबह प्रस्थान किया मेवाड़ की ओर, हुसैन टेकरी में दो घण्टे गुजारते हुये, रास्ते में बेडि़न औरतों के यौनकर्म के नजारों से दो-चार होते हुये न्यू राजस्थानी ढ़ाबा, भाटखेड़ा पहुंचकर रूके, संयोग से होटल मालिक सरकार का मुरीद निकला, भोजन अत्यन्त स्वादिष्ट था और प्रचुर मात्रा में भी, भरपेट खाये, अधाये और निम्बाहेड़ा कोतवाली जा धमके, थानेदार श्री राजूराम जी ने कॅाफी पिलाई, बातें हुई, वसीम इरफानी जी, सिराज साहब से जी भरकर बातें हुई, वसीम जी ने तो बाथरूम को ही हुजरा बना दिया, हम दोनों ने वहीं बैठकर बुल्लेशाह का कलाम ‘‘बुल्लिया की जाणां मैं कौण’’ सुना, शेष साथी एनजीओ की रामकहानी सुनते रहे, राह में अशोक भाई मिले, फिर पहुंचे चित्तौड़ सलीम बाबा साहब के पास, कण्डक्टर साहब, वकील साहब इत्यादि ने खूब प्रेमपूर्वक सामिष निरामिष भोज करवाया, बाबा साहब बोले-भजिया बनाओ, हमने दाल, रोटी, भजिया, गुलाब जामुन ना जाने क्या-क्या खाया। करेड़ा में आगामी दिनों में आयोज्य उर्स शरीफ की तैयारियों पर चर्चा हुई, दाता से मुलाकात की बात तफसील से सुनकर सलीम बाबा ने व्याख्यायित की, बोले-‘भाई जान अब चल पड़ो, रास्ता बनाओं, पांव जमाओ, चल पड़ो, चल पड़ो, चल पड़ो।

बाद में कुंभानगर में जाकिर भाई के यहां चायपान करके रात 12 बजे घर के लिये रवाना हुये, रास्ते भर साबरी बद्रर्स, वडाली बंधु, नुसरत फतेहअली के रंग और रूबरू-ए-यार के सुनते हुये 01:30 बजे घर पहुंचे, थोड़ी देर रहस्यवादी लेखक पॅालो कोएलो की विजेता अकेला पढ़ी और नींद के आगोश में समा गये, एक ऐसी नींद जो कल सुबह टूट जानी है।

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