Thursday, February 28, 2013

आप तो हमारे महाराज है !

यूं तो जिन्दगी बदस्तूर ठीक वैसे ही खिसकती जा रही है जैसे गुजिश्ता सालों में गुजरती रही मगर इस बार 38वें साल का उल्लंघन करते हुये सोचा गया कि एक यात्रा की जाये, जो बाहर से ज्यादा भीतर की हो।

24 फरवरी को मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले के लूनिया खेड़ी ग्राम में कबीर महोत्सव भी था। इस महोत्सव में जाने की दिली ख्वाहिश थी। सद्गुरू सैलानी साहेब के दीदार का मन तो कर ही रहा था तो यात्रा शुरू कर दी, कबीर महोत्सव में शिरकत करने और सद्गुरू के दीदार के लिए।

इस अंतरयात्रा पर जो सहयात्री बने, वे लोग परम मित्रों में शुमार होते है दोस्त, सखा, हमनवां, हमसफर, सहयोगी, साथी, मित्र, सर्वस्व। आन्दोलनों और संघर्षों के सहभागी सुख-दुःख के मीत, नितान्त अपने बंधु, बांधव। सामाजिक जीवन में जिनके बिना मैं ‘मैं’ नहीं बनता, ऐसे मित्रजनों के साथ मेवाड़ की धरती से चला काफिला मालवे की तरफ बढ़ा, नया गांव में अखिल भारतीय गाडि़या लौहार समाज कल्याण समिति के अध्यक्ष माधव सिंह सिसोदिया तथा बैरण के निवासी कबीरपंथी छोगजी के यहां चाय और चर्चा करते हुये पीपल्यामण्ड़ी पहुंचे, जहां पर वरिष्ठ समाजसेवी एवं मध्यप्रदेश शिक्षा विभाग के अधिकारी गोपाल जी के घर अतिशय प्रेमपूर्वक नैवेद्य ग्रहण किया, उन्होंने अत्यन्त स्नेह से भोजन करवाया। दिनेश जी गुरूजी भी वहीं थे, उन्हें जब ज्ञात हुआ कि हमारा रात्रि विश्राम उज्जैन होगा तो उन्होंने फूल सिंह जी पंवार को फोन कर दिया।


हम रात्रि 11 बजे उज्जैन पहुंचे, वहां फूल सिंह जी, उनकी पत्नि और पूरे परिवार ने हम सब मित्रों का इस्तकबाल किया।

गरमागरम चाय के साथ खूब सारी चर्चाएं हुई। समाज के मत मतान्तर पर बेहद रोचक चर्चा के बाद सो गए। प्रातः उठे और मक्सी के समीप स्थित लूनिया खेड़ी के लिये प्रस्थायित हुये।

ठीक 8 बजे पद्मविभूषण मंहत प्रहलाद सिंह जी टिपाणिया के गांव लूणिया खेड़ी में उनकी पैतृक कृषि भूमि में बने कबीर स्मारक पहुंच गये। आज यहां कबीर सांस्कृतिक चेतना यात्रा पहुंच रही है, जिसमें देश-विदेश से कई लोग शिरकत कर रहे है, दिन भर कबीर महोत्सव है। टिपाणिया जी से मुलाकात हुई, उन्होंने बताया कि कबीर स्मारक पर ध्वज पूजन के पश्चात सभी लोगों को मक्सी पहुंचना होगा, वहां कबीर सांस्कृतिक चेतना यात्रा पहुंचने वाली है, यात्रा में पधार रहे लोगों को स्वागत सत्कार किया जाएगा और फिर विशाल शोभायात्रा निकाली जाएगी जो मक्सी के मुख्य मार्गों से होती हुई लूनिया खेड़ी पहूंचेगी। हम लूनिया खेड़ी से पुनः मक्सी आ गए, वहां सर्किट हाउस पर पहुंची सांस्कृतिक चेतना यात्रा में आए लोगों का स्वागत किया गया। गुरू वन्दना के साथ ही शोभायात्रा का शुभारंभ किया गया। बैण्ड बाजों के साथ विशाल शोभायात्रा निकाली गई। टिपाणिया जी ने बैण्ड बाजों के साथ कबीर के भजन गाकर हरेक को मस्त कर दिया। शोभायात्रा में टिपाणिया जी, भूरा लाला मारवाड़ी सहित कई लोगों की मधुरवाणियां सुनने को मिली। निरन्तर 17 वर्षों से यह यात्रा निकल रही है, कबीर यात्रा, कबीर के शब्द, चारों तरफ कबीर ही कबीर, हमने इसमें शिरकत कर पाने को अपना सौभाग्य माना। लगा कि मक्सी के बाजार मंे कबीर लिये लुकाटी हाथ खड़ा है। साथी परशराम जी बंजारा, रतननाथ जी कालबेलिया, लखन जी सालवी, हीरजी तथा अनाड़नाथ जी भी खूब आनंदित हुये। हीरजी और रतनजी तो आनंनदातिरेक नाचे भी। वैसे नाचे तो हम भी, मगर मन ही मन। किसी ने शायद ही हमें नृत्यावस्था में पाया हो मगर हम ‘नाच उठ्यो मनमोर’ की स्थिति में रहे।


कबीर साहब की वाणियों से सरोबार होकर निकले तो पहुंचे मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित सैंधवा में। सैंधवा के शांति पैलेस में रात रूके। 25 फरवरी की प्रातः 7 बजे रवाना हुये टाक्या पानी के लिये, सद्गुरू सैलानी साहब के दीदार को। सैंधवा से बलवाड़ी जाते वक्त करीब 30 किलोमीटर के फासले पर यह आदिवासी गांव आता है। टाक्यापानी गांव के मध्य स्थित है संत श्री सैलानी सरकार की खानकाह। अजब बाबा की गजब लीला स्थली, देखदेख अचरच भयो की मनस्थिति में पहुंचे। यह सुनकर बेहोश होते-होते बचे कि बाबा साहब तो कल अपराह्न 3 बजे ही बुलढ़ाणा चले गये। अब कहां है पता नहीं, मुझे लगा कि सरकार नाराज है . . मुझ नाचीज से। कितनी तमन्ना थी कि 39वां जन्मदिन हुजूर के कदमों में गुजारूं मगर अब क्या करे, हुजरे के बाहर धोक लगाई, बोराणा वाले चांद भाई मिल गये, बोले दीदार की प्रबल इच्छा है तो गाड़ी दौड़ाओं और पहुंच जाओ बुलढ़ाणा, यहां से करीब 250 किलोमीटर होगा, उन्होंने कुछ मोबाइल नम्बर भी दे दिये, जिन पर सम्पर्क कर हम सरकार तक पहुंच सके।

इसी दौरान यह भी पता चला कि सरकार की जन्मस्थली अनसिंग (जिला-वाशिम-महाराष्ट्र) से भी 10-12 युवाओं की एक टोली आई है, वह भी सरकार के दीदार के लिए बुलढ़ाणा जा रही है। हमने उन्हें ‘हनीफ शाह तुम्हारे दीवाने आये है’ की धुन पर नाचते हुये गाते हुये देखा ही था, उनकी शिरनी (तर्बरूका) भी खाई थी, हमें प्रसन्नता हुई कि सरकार के गांव के लोगों के साथ जाने का मौका मिलेगा। हम साथ-साथ रवाना हुये। अभी हम 70-75 किलोमीटर का रास्ता तय कर पाये थे, यावल कस्बे के पास ही पहुंचे थे कि खबर मिली कि सरकार ने वापस टाक्या पानी का रूख कर लिया है। हम रूक गये राह पर ही, एक घण्टे लम्बे इंतजार के बाद सरकार की गाड़ी यावल के नदी किनारे वहां रूकी जहां हम लोग खड़े थे। मुझे रामदेव पीर के भक्त हरजीभाटी की वाणी का स्मरण हो आया - ‘हरजी ने हर मिल्या आड़े मार्ग आय’, हमें भी बीच राह मिल गये, सदगुरू।

सरकार के दीदार हो गए, उनसे 10 मिनट तक बातें हुई। वे बोलते रहे, हम वशीभूत हुये सुनते रहे ‘‘पांव जमाओं, रास्ता खोजो, चल पड़ो’’ जैसे सूत्र वाक्यों के साथ आध्यात्मिक ज्ञान की सैकड़ों बातें। फिर 75 किलोमीटर का वापसी का सफर सद्गुरू के साथ हुआ। यावल में नाश्ता, अड़ावदा में थोड़ा रूकना, चौपड़ा होते हुये काफिला बढ़ता ही गया, बलवाड़ी में दिलशेर भाई के मकान पर आपने मुकाम किया। हम फिर दीदार को पहुंचे, बाबजी ने पूछा - कहां से आये ? मैं बोला-भीम से, फिर पूछा-मार्ग में कहां मिले ? मैंनें बताया-यावल में, फिर बोले-क्या करते हो ? मैंने कहा-पत्रकार हूं, सरकार ने एक क्षण मेरी और देखा और ठहाके के साथ हंसते हुए कहा - आप तो हमारे महाराज है।

फिर इजाजत दी - चलो। बाकी साथी भी मिले, इजाजत ली, फिर चल पड़े सैंधवा के लिये, भोजनोपरान्त फिर से होटल शांति पैलेस के उसी कमरा नम्बर 114 में पहुंचे। लखनजी, हीरजी, अनाड़जी केक वगैरह लेकर आ गये, केक काटने से लेकर गुब्बारा फोड़ने तक का जुग-जुग जीओ का आशीष भरा ‘कारजक्रम’ सम्पन्न हुआ, अब कमल हासन की बहुचर्चित फिल्म ‘विश्वरूपम’ देखनी है, हीरजी ने खर्राटे लेने शुरू कर दिये है और दूसरी ओर चलचित्र पर हमारी दृष्टियां जमती जा रही है।

इस प्रकार सतपुड़ा की पहाडि़यों में निर्मल आदिवासियों और दण्डकारण्य क्षेत्र में 39वां बरस जिन्दगी का साक्षात सामने आ गया, स्वागत है भाई आपका भी।

26 फरवरी की सुबह प्रस्थान किया मेवाड़ की ओर, हुसैन टेकरी में दो घण्टे गुजारते हुये, रास्ते में बेडि़न औरतों के यौनकर्म के नजारों से दो-चार होते हुये न्यू राजस्थानी ढ़ाबा, भाटखेड़ा पहुंचकर रूके, संयोग से होटल मालिक सरकार का मुरीद निकला, भोजन अत्यन्त स्वादिष्ट था और प्रचुर मात्रा में भी, भरपेट खाये, अधाये और निम्बाहेड़ा कोतवाली जा धमके, थानेदार श्री राजूराम जी ने कॅाफी पिलाई, बातें हुई, वसीम इरफानी जी, सिराज साहब से जी भरकर बातें हुई, वसीम जी ने तो बाथरूम को ही हुजरा बना दिया, हम दोनों ने वहीं बैठकर बुल्लेशाह का कलाम ‘‘बुल्लिया की जाणां मैं कौण’’ सुना, शेष साथी एनजीओ की रामकहानी सुनते रहे, राह में अशोक भाई मिले, फिर पहुंचे चित्तौड़ सलीम बाबा साहब के पास, कण्डक्टर साहब, वकील साहब इत्यादि ने खूब प्रेमपूर्वक सामिष निरामिष भोज करवाया, बाबा साहब बोले-भजिया बनाओ, हमने दाल, रोटी, भजिया, गुलाब जामुन ना जाने क्या-क्या खाया। करेड़ा में आगामी दिनों में आयोज्य उर्स शरीफ की तैयारियों पर चर्चा हुई, दाता से मुलाकात की बात तफसील से सुनकर सलीम बाबा ने व्याख्यायित की, बोले-‘भाई जान अब चल पड़ो, रास्ता बनाओं, पांव जमाओ, चल पड़ो, चल पड़ो, चल पड़ो।

बाद में कुंभानगर में जाकिर भाई के यहां चायपान करके रात 12 बजे घर के लिये रवाना हुये, रास्ते भर साबरी बद्रर्स, वडाली बंधु, नुसरत फतेहअली के रंग और रूबरू-ए-यार के सुनते हुये 01:30 बजे घर पहुंचे, थोड़ी देर रहस्यवादी लेखक पॅालो कोएलो की विजेता अकेला पढ़ी और नींद के आगोश में समा गये, एक ऐसी नींद जो कल सुबह टूट जानी है।

Saturday, February 16, 2013

यू आई डी बेस्ड कैशट्रांसफर : मिथक और सच्चाई


  • अरूणा रॅाय/ भॅवर मेघवंशी 

यूआईडी अथॅारिटी का यह दावा निराधार साबित हुआ है कि आधार कार्ड ऐच्छिक है अनिवार्य नहीं, दिल्ली सरकार ने इसे अनिवार्य कर दिया है, राजस्थान में आधार के बिना कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलेगा। यूआईडी ने गरीबों पर अपना ताना-शाही रवैया दिखाना शुरू कर दिया है तथा यह स्पष्ट हो चुका है कि गरीब को अपनी हरेक सुविधा पाने के लिये आधार कार्ड लगाना जरूरी है। 

प्रश्न यह है कि क्या हम चाहते है कि हमारी सारी सूचनाएं सत्तातंत्र और किन्हीं कम्पनियों के पास रहे? यहांहमें यह समझना जरूरी है कि नागरिकों की सूचनाएं सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा इस प्रकार लिये जाना सूचना के अधिकार के बिल्कुल विपरीत कदम है क्योंकि आरटीआई में सत्ता की सूचनाएं जनता के पास होती है, इस प्रकार सत्ता का तंत्र कमजोर होता है और लोक मजबूत, यह ठीक इसके खिलाफ कदम है क्योंकि यहां पर सत्ता के पास जनता की सारी सूचनाएं एकत्र की जा रही है, बाद में इन सूचनाओं की सुरक्षा के नाम पर पूरे सूचनातंत्र पर एक बार पुनः गोपनीयता का आवरण चढ़ाया जायेगा तथा अन्ततः सूचना के अधिकार को भी इससे सीमित करने की कोशिश की जायेगी।

आधार परियोजना के कर्ताधर्ता और सत्ता प्रतिष्ठान यह साफ-साफ नहीं बोलना चाहता है कि इसे क्यों किया जा रहा है, आधार बेस्ड नकद हस्तातंरण को वे गेम चेंजर कह रहे है, जादू की छड़ी कह रहे हैं, कह रहे है कि आपका पैसा आपके हाथ। देखें तो पता चलता है कि जिन योजनाओं में कैश ट्रांसफर अथवा डायरेक्ट बैनीफिट को लागू किया गया है, वहां तो पहले से ही पैसा लोगों के हाथों में ही आ रहा था, फिर नया क्या है? इतना ढिंढोरा क्यों पीटा जा रहा है़? क्या यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली को समाप्त करने की दिशा में कदम है? फिलहाल तो वे इससे मना कर रहे है मगर बहुत सम्भावना है कि एक दिन वे अनाज, केरासीन आदि सुविधाएं देना बंद करके सीधे नकद खातों में भेजना शुरू कर देंगें। सरकार मानती है कि हम राशन बांटने में असफल रहें है, पीडीएस में चोरियां रोकने में विफल रहे है इसलिये हम सुविधाओं के बदले पैसा दे देंगे। हमें लगता है इस सोच में ही बड़े खतरे निहित है, सरकार अपनी असफलताओं का सामना करने के बजाय घुटने टेकती रहेगी तथा उसका खामियाजा देश के लोग उठाने को मजबूर होगें, उन पर जोर जबरदस्ती आधार आधारित नकद हस्तातंरण योजना लाद दी जायेगी। अन्ततः गरीबों के पास भूख से बचने का जो एकमात्र साधन पीडीएस के रूप में मौजूद है वह भी खत्म हो जायेगा। क्योंकि खुले बाजार में अनाज के दाम बढ़ जायेगें तथा बाजार के लिये सबसे आसान है गरीबों से पैसे ऐंठ लेना। खुले बजार में बढ़ती कीमतों के समक्ष सरकार द्वारा खातों में डाली जाने वाली राशि ऊंट के मुंह में जीरे जितनी ही होगी।

वैसे भी कैश ट्रंासफर वाले रास्ते में और भी खतरे है, सरकार जनकल्याण की कई अन्य जिम्मेदारियों में भी अपनी असफलताओं का तर्क देकर अपने दायित्वों से भाग खड़ी होगी। कल वह यहीं तर्क शिक्षा के लिये और स्वास्थ्य के लिये भी देगी, कहेगी कि हम विद्यालय चलाने में सक्षम नहीं है, पैसे ले लो और अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाओं, क्या निजी स्कूलों की फीस में एकरूपता है? क्या सभी निजी स्कूल सरकार द्वारा कथित रूप से देय नकदी, जितनी ही फीस में आपके बच्चों को पढ़ायेंगे ? ऐसा ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी होगा, सरकार कहेगी, हम स्वास्थ्य सेवाएं देने में सक्षम नहीं है, ये पैसे ले लो और प्राइवेट हॅास्पीटल में इलाज करवा लो, क्या निजी अस्पताल सरकार द्वारा दी गई नकदी में जनता का ईलाज कर देंगे? बिल्कुल भी नहीं? जब हम जानते है कि निजी विद्यालय और निजी अस्पताल सरकार द्वारा दी गई नकदी के बदले जनता को शिक्षा और स्वास्थ्य नहीं दे पायेंगे तब क्या बाजार जनता को अनाज, केरोसीन अथवा अन्य सुविधाऐं उन्ही पैसों में देगा? कतई नहीं यह जनता को बाजार के हवाले करने का एक तरीका है, यह सरकार द्वारा अपनी जिम्मेदारियों से भागने का एक रास्ता है। सच्चाई यह है कि यह बाजारीकरण और निजीकरण की एक ऐसी साजिश है जिसमें नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, अनाज जैसी तमाम बुनियादी जरूरत की चीजें भी सरकार नहीं दे सकती है तो फिर जनता को सरकार की जरूरत ही क्या है ?

यूआईडी आधारित कैश ट्रांसफर जैसी महत्वाकांक्षी परियोजना को लागू करने से पहले तथा इसे लागू किये जाने के बाद भी यह पूछा जाना जरूरी होगा कि इस प्रकार की योजनाएं लाने का मकसद क्या है? वास्तव में जनता इससे लाभान्वित होगी? साथ ही समय-समय पर इसकी समीक्षा व मूल्यांकन करके बताया जाना चाहिये कि लक्षित फायदा जनता तक पहुंचा अथवा नहीं?

जब भी कैष ट्रांसफर के लक्षित लाभार्थियों के बारे में हमनें यूआईडी कैश ट्रांसफर के पक्षधरों से सवाल पूछा, उनकी ओर से कोई भी जवाब नहीं मिलता है। सोचने की बात यह है कि कई योजनाओं में तो आज भी उस लक्षित लाभार्थी को पहले भी पैसा ही मिल रहा था। आज भी पैसा ही मिल रहा हैं, पहले भी बैंक खाते में जमा हो रहा था, आज भी बैंक खाते में ही जमा हो रहा हैं। नया सिर्फ इतना सा है कि पहले लोग लाभार्थी की पहचान करते थे, अब वह अपनी 10 अंगुलियों और आँख की पुतलियों द्वारा मशीन से पहचाना जायेगा तथा इन्हीं पहचानों के आधार पर उसे उसका पैसा मिलेगा।

दरअसल सरकार को अपना नारा बदल लेना चाहिये - “आपका पैसा-आपके हाथ” नहीं बल्कि “आपका हक-मशीन के पास” कहा जाना चाहिये , क्योंकि मशीन को ठीक लगेगा तो वह आपका पैसा आपके हाथ देने की इजाजत देगी अन्यथा नहीं। अब इसके व्यवहारिक पहलुओं पर भी नजर डालनी चाहिये। राजस्थान के अजमेर जिले की तिलोनियां ग्राम पंचायत की सरपंच कमला देवी का ही उदाहरण लीजिये, उसका आधार कार्ड नहीं बन पा रहा है क्योंकि उसके अगुलियों के कोई निशान ही नहीं आते है, ऐसा ही उनकी पंचायत की दर्जनों वृद्ध व विद्यवा महिलाओं के साथ है जिन्हें अब तक तो पैंशन मिलती रही है मगर फिंगर प्रिन्टस के अभाव में आधार कार्ड नहीं बनने पर अब उनकी पैंशन अटक जायेगी, मशीन के खराब होने, कनेक्टिविटी नहीं होने तथा हैंग हो जाने की तो अभी हम बात ही नहीं कर रहे हैं मगर उन लाखों बच्चों, बूढ़ों और मेहनत मजदूरी करने वाले लोगों का क्या होगा जिन्हें आधार कार्ड बनाने वाली मशीन पहचान ही नहीं पा रही हैं, उनके हाथ की अंगुली व अंगूठे कोई निशान नहीं देते अथवा उन निरन्तर बुढ़ाती आंखों का क्या होगा जो मोतियाबिंद की शिकार होकर इन मशीनों की समझ से परे हैं, क्या ये मेहनती हाथ और वृद्ध होती आंखें कभी अपना हक ले पायेंगे? यूआईडी अथॅारिटी का जवाब है कि जिनके फिंगरप्रिंट और आंखों के रेटिना नहीं मिलेंगे उनको भी बिना मशीन की इजाजत के पैसा मिलेगा, इससे स्पष्ट हो जाता है कि यूआईडी को निगरानी के लिये काम में नहीं लिया जा सकता है। फर्जी आधार कार्ड के आधार पर भी फर्जीवाड़े की संभावना बनी रहेगी यह एक ऐसी तकनीक है, जिसकी शत प्रतिशत सफलता नहीं हो तो चोर दरवाजे सदैव खुले रहते है तथा भ्रष्टाचार पर रोक का उसका दावा भी खोखला साबित होता है। हमें लगता है कि जैसे यह सूचना के अधिकार के खिलाफ है वैसे ही यह जन निगरानी के भी विपरीत है, जनता को सूचना देकर उनको शक्तिशाली बनाने के बजाय हम पूरा काम मशीनों पर छोड़ रहे है, हम आज तक पूरे देश में मतदाता पहचान पत्र लागू नहीं कर पाये तो यह अंगूठा छाप तकनीक (आधार कार्ड) कब लागू हो पायेगी इस पूरी परियोजना के लागू होने में भारी सन्देह है, आधार कार्ड पर आधारित नकद हस्तांतरण को लागू किये जाने के पहले दिन को देखें तो भी इसकी पोल खुल जाती है राजस्थान के अलवर, उदयपुर तथा अजमेर जिलों में इसे लागू किया गया है। योजना के पहले दिन (1 जनवरी 2013) हालात इस प्रकार रहे -

अजमेर में पहले दिन 22 हजार लाभार्थियों मे से केवल 527 को लाभ मिला, 25 लाख लोगों के आधार कार्ड बनने थे बने सिर्फ 6 लाख के, उदयपुर जिले में 16,500 लाभार्थियों में से महज 800 लागों के ही बैकों में खाते खुल पाये है।

ऐसा ही बहु प्रचारित अलवर जिले में हुआ जहां पर पहले दिन तक मात्र 99,174 आधार कार्ड ही बन पाये जिनमें भी केवल 84,000 के ही बैक खाते खुल पाये है। यह स्थिति तो तब है जबकि अलवर, अजमेर तथा उदयपुर जिलों का पूरा प्रशासन महीनों तक सिर्फ इसी कवायद में जुटा रहा, बावजूद इसके भी जो उपलब्धि हासिल हुई वह खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसी है।

वैसे तो आधार कार्ड बनाने की परियोजना पर संसदीय समिति ने बहुत से सवाल उठाये है, मगर संसद को दरकिनार करके भी आधार कार्ड बनाने का काम जारी है, इसके लिये संसद में कोई कानून बनाने की बात तो दूर संसदीय समिति की आपत्तियों पर भी गौर नही किया गया है।

वैसे भी आधार कार्ड से कोई नागरिकता की पहचान तो मिल नहीं रहीं है, इसे बनाने के लिये पहचान के सबूत लाना जरूरी है, बहुत सारे कार्डो के साथ एक और कार्ड जरूर बन जायेगा।

हमें यह समझना होगा कि यह पहचान का कार्ड नहीं है, इससे न तो नागरिकता मिलती है और ना ही बहुत सारे कार्ड रखने के झंझट से मुक्ति। हमारी पहचान तो उन्ही कार्डो से स्थापित होगी, लेकिन सत्ता को हमारी खबर लेने का यह एक उपकरण जरूर बन जायेगा। यह पहचान से ज्यादा नागरिकों की ट्रेकिंग करने का यंत्र बनेगा। 

इसके जरिये हमारी सूचनाएं जरूर बड़ी कम्पनियों तक पहुंच जायेगी उन्हें पता चलेगा कि हमने कहां, क्या खरीदा है? जैसे बैंक वाले हमारी जानकारियां किसी और को नहीं मगर कम्पनियों को जरूर देते है, अब आधार कार्ड के जरिये जनता की सूचनाएं पुलिस, आई.बी. और सत्ता प्रतिष्ठान में बैठे सारे शक्तिशाली लोगों तक पहुंचेगी। पहली बार एक ऐसा प्लेटफॅार्म तैयार हो रहा है, जहां हमारी सारी सूचनाएं एक जगह पर होगी तथा इसके दुरूपयोग के जरिये लोगों के निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा ।

ताज्जुब की बात है कि इन सारी सूचनाओं को एकत्र करने वाली वे कम्पनियां है जिनका अमेरिका के रक्षा मंत्रालय से अनुबंध रहा है कुछ प्राइवेट कम्पनियों का तो कुख्यात अमेरिकन खुफिया एजेन्सी सीआईए से भी रहा है क्या इस खतरे के प्रति हमें आंख मूंद लेनी चाहिये?

आधार कार्ड के पक्ष धरों का कहना है कि ये सूचनाएं कभी भी सुरक्षा तथा व्यवसायिक एजेंसियों को नहीं दी जायेगी इनका उपयोग तो गरीबों को उनका हक दिलाने तथा उन्हे विकास से जोड़ने के काम में लिया जायेगा, मगर सच्चाई तो यह है कि इस तकनीक के चलते कई लोग इसके फायदे बाहर ही रह जायेंगे, नकद को बैंक तथा व्यक्ति के हाथों तक आते आते इतनी देरी हो जायेगी कि अन्ततः लोग इस व्यवस्था से ही तंग आकर इसको उखाड़ फैंकेगें मगर तब तक कितना खर्चा और कितनी तकलीफें सहनी होगी, इस पर विचार किया जाना आवश्यक है। हाल ही में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने इस सिस्टम का उद्घाटन करते वक्त कहा कि उनके पास आधार कार्ड नहीं हैं क्योंकि उन्हें सुविधाएं लेने के लिये इसकी जरूरत नहीं है। 

हमारा सुझाव है कि पहले दौर में यूआईडी को, एक साल के लिये सासंदों, मंत्रियों, विधायकों, कर्मचारियों तथा अधिकारियों के लिये काम में लिया जाये, उनकी तमाम आय, सम्पत्ति और बैंक खातों आदि के विवरण को आधार के साथ जोड़ दिया जाये तथा उससे कोई जादुई असर दिखे तो शायद हम बाकी के लोग भी इसे अपनाने के लिये तैयार हो जायेंगे वर्ना यह योजना ‘गेमचैंजर‘ नहीं बल्कि गर्वनमेंट चेंजर साबित हो सकती है।

(लेखकद्वय मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ कार्यरत है)

आधार कार्ड: झूठे जग भरमाय


  • भंवर मेघवंशी
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के समर्थक दावा करते है कि आधार कार्ड के जरिये फर्जीवाड़ा रोकने में मदद मिलेगी, लेकिन अगर आधार कार्ड बनाने में ही फर्जीवाड़ा होने लगे तो ?
UIDजी हां, पिछले दिनों राजस्थान के भीलवाड़ा शहर में ऐसा ही मामला उजागर हुआ, शहर के आजादनगर क्षेत्र में 22 जनवरी को पुलिस ने एक युवती राधिका को हिरासत में लेकर पूछताछ की, जिस पर आरोप है उसने नीतू सुथार तथा महेन्द्र लाल इत्यादि से आधार कार्ड बनवाने के लिये 200-200 रुपए ले लिये। आधार के नाम पर फर्जीवाड़ा कर रही इस महिला की हरकत के उजागर होने के बाद कुछ लोगों ने इसकी शिकायत एडीएम टीकमचंद बोहरा से की, एडीएम बोहरा पुलिस के साथ मौके पर पहुंचे तथा महिला से मामले की जानकारी ली। पुलिस की पूछताछ से पता चला कि पैसा वसूल रही युवती राधिका आधार पंजीयन करने वाले ठेकेदार के यहां मशीन अॅापरेटर है तो यह स्थिति है आधार कार्ड बनाने के दौरान की, अब जो आधार फर्जीवाड़े से शुरू हो रहा है वह भ्रष्टाचार को कैसे रोकेगा यह विचारणीय प्रश्न है।
दूसरी चौंकाने वाली सच्चाई यह सामने आई कि राजस्थान सरकार ने बीपीएल लोगों को आधार कार्ड बनवाने पर मिलने वाले 100 रुपये प्रति व्यक्ति प्रोत्साहन देने की राशि को ही दबा लिया, जिससे गरीबों का हक मारा गया। जानकारी के मुताबिक इस केंद्रीय योजना के लिये वित्त आयोग ने कुल 2989.10 करोड़ रुपये स्वीकृत किये थे। यह राशि वर्ष 2004-05 की बीपीएल जनसंख्या के आधार पर तय की गई थी। राजस्थान को भी इसमें से 134.9 करोड़ रुपये स्वीकृत हुये, मगर राज्य सरकार ने राज्य में इसे लागू ही नहीं किया, इस प्रकार आधार कार्ड बनवाने वाले प्रत्येक परिवार को औसतन 400-500 रुपये का नुकसान हो गया, अब सरकार कह रही है कि वह जल्दी ही इस योजना को लागू करेगी लेकिन सवाल यह है कि अगर समाचार पत्रों ने इस गड़बड़झाले को उजागर नहीं किया होता तो यह योजना सामने ही नहीं आ पाती। आधार कार्ड को हर योजना को लागू करने की जीवन रेखा बता रहे लोग इसका क्या जवाब देंगे कि आधार कार्ड बनवाने के लिये जो योजनाएं बनाई गई, वे ही लागू नहीं की जा रही तो इस आधार पर दूसरी योजनाओं की सफलता कैसे सुनिश्चित हो पायेगी?
तीसरी बात यह है कि सरकार ने विशिष्ट पहचान पत्र (आधार कार्ड) बनाने को ऐच्छिक माना है, उसका दावा है कि यह अनिवार्य नहीं है लेकिन सरकारी दावे के विपरीत गरीबों को यह कहा जा रहा है कि अगर उन्होंने वक्त रहते आधार कार्ड नहीं बनवाया तो उन्हें किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलेगी, यहां तक भ्रम फैलाया जा रहा है कि जिनका आधार कार्ड नहीं होगा उन्हें वोट ही नहीं डालने दिया जायेगा, भीलवाड़ा में तो कांग्रेस का जिला मुख्यालय आधार कार्ड बनाने का कार्यालय बन चुका है, वैसे तो सत्तारूढ़ दल का कार्यालय कार्यकत्र्ताओं की आमद के लिये तरसता रहा है मगर आजकल जिलाध्यक्ष एक कमरे तक सिमट गये है तथा पूरे कार्यालय में आधार ही आधार दिखाई पड़ेगा, जिले में पार्टी इस प्रकार अपना ‘जन-आधार’ बढ़ा रही है!
आधार कार्ड बनवाने की ऐच्छिकता तो कोरी बयानबाजी ही है क्योंकि सरकारी कर्मचारियों को स्पष्ट कर दिया गया है कि अगर उन्हें वेतन चाहिये तो आधार कार्ड का नम्बर लगाना होगा, इसी प्रकार गैस एजेन्सी के संचालक कह रहे है कि रसोई गैस के लिये आधार कार्ड का नम्बर देना आवश्यक है। अगर आधार कार्ड और उससे लिंक बैंक खाते की जानकारी नहीं दी गई तो उपभोक्ताओं के खाते में गैस अनुदान राशि नहीं पहुंच पायेगी।
भीलवाड़ा के अतिरिक्त जिला कलक्टर (प्रशासन) टीकमचंद बोहरा का कहना है कि 1 अप्रेल से जिले में नकद हस्तान्तरण योजना लागू की जा रही है, इसका लाभ लेने के लिये आधार कार्ड बनवाना ही होगा। इसी प्रकार राज्य के मुख्य सचिव सी.के. मैथ्यु का कहना है कि एक अप्रेल से बिना आधार कार्ड व बैंक खाते के राज्य की 18 योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा। इस प्रकार के फरमान यह साबित करने के लिये काफी है कि आधार कार्ड बनवाना ऐच्छिक न होकर अनिवार्य कर दिया गया है।
आधार कार्ड बनवाने में आ रही चुनौतियों पर विचार किये बिना ही इसे अनिवार्य कर देना गरीबों को उन्हें मिलने वाले फायदों से वंचित करने की रणनीति का हिस्सा है, सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग, श्रम, शिक्षा, रोजगार, महिला एवं बाल विकास विभाग, चिकित्सा विभाग की जननी सुरक्षा योजना, घरेलू गैस सब्सिड़ी, अजा, जजा तथा अन्य पिछड़ा वर्ग छात्रवृत्ति योजनाएं तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाली वस्तुओं सहित कुल 18 योजनाओं को राज्य सरकार आधार से जोड़ रही है, सरकार ‘प्रलोभन’ देकर अथवा ‘भय’ दिखाकर हर हाल में ‘आधार कार्ड’ बनवाने पर तुली हुई है, सवाल यह है कि क्या एक कार्ड गरीबों की सब समस्याओं को खत्म कर देगा अथवा सरकार गरीबों की विशिष्ट पहचान बनाकर धीरे-धीरे उन्हें खत्म कर देगी ?

औवेसी, हमें भी जवाब देना आता है


  • भंवर मेघवंशी
मेरे कानों में मुसलमानों के एक घटिया नेता और झूठे खैख्वाह अकबरूद्दीन औवेसी की कड़वी भाषा रह रह कर गूंज रही है, यू ट्यूब पर जब से मैंने उस आस्तीन के सांप का जहर उगलता हुआ एक घण्टे का भाषण सुना तब से मेरा रोम-रोम विद्रोह किये हुये है, मेरा ही नहीं बल्कि तमाम वतनपरस्त और इंसानियतपरस्त लोगों का खून खौल रहा है, खौलना भी चाहिये क्योंकि कोई भी हरामजादा गीदड़ मुल्क के किसी भी कोने में अपने द्वारा जुटाई गई किराये की भीड़ के सामने शेर बनकर दहाड़ने की कोशिश करें तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए, अकबरूद्दीन औवेसी कहता है – मैं सिर्फ मुस्लिम परस्त हूं, उसे अजमल कसाब को फांसी दिये जाने का सख्त अफसोस है, वह टाइगर मेनन जैसे आतंकी का हमदर्द है, वह मुम्बई के बम धमाकों को जायज ठहराता है, देश के मुम्बई संविधान, सेकुलरिज्म और बहुलतावादी संस्कृति की खिल्ली उड़ता है। कहता है, हम तो दफन होकर मिट्टी में मिल जाते है मगर हिन्दू जलकर फिजा में आवारा की तरह बिखर जाते है, वह देश के दलितों व आदिवासियों को दिये गये रिजर्वेशन पर सवाल खड़े करता है और इन वर्गों की काबिलियत पर भी प्रश्न चिन्ह लगाता है।
औवेसी की नजर में भारत जालिमों का मुल्क है, दरिन्दों का देश है, जहां पर मुसलमान सर्वाधिक सताये जा रहे है, उसने गुजरात से लेकर आसाम तक के उदाहरण देते हुये आदिलाबाद की सभा में मौजूद लोगों को उकसाया कि हमसे मदद मत मांगों खुद ही हिसाब बराबर कर दो, बाद में हम सम्भाल लेंगे। इतना ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान की सेकुलर अवाम से भी औवेसी को बहुत सारे जवाब चाहिये, बहुत सारे हिसाब चाहिए, अयोध्या का बदला चाहिये, गुजरात का प्रतिरोध चाहिये, खुलेआम खून खराबा चाहिये, जब यह रक्तपात हो जायेगा तब वह सेकुलर होने के बारे में सोचेगा ! नहीं तो अभी की तरह कम्युनल ही बना रहेगा, हद तो यह है कि देश के खिलाफ जंग छेड़ने की धमकी देते हुये वह मुल्क के अन्य धर्मों के लोगों को ‘‘नामर्दों की फौज’’ कहता है, और राम को राम जेठमलानी के बहाने इतिहास का ’सबसे गंदा आदमी बताता है जो औरतों का एहतराम नहीं करता था।’
औवेसी की ख्वाहिश है कि महज 15 मिनट के लिये इस मुल्क से पुलिस हटा ली जाये तो वो हजार बरस के इतिहास से ज्यादा खून खराबा करने की ताकत रखता है और देश के 25 करोड़ मुसलमान इस देश का इतिहास बदलने की कुव्वत! बकौल औवेसी तबाही और बर्बादी हिन्दूस्तान का मुस्तकबिल बन जायेगा। ऐसा ही प्रलाप, भाड़े के टट्टूओं की भीड़ में, अल्लाह हो अकबर के उन्मादी नारों के बीच में आंध्रप्रदेश असेम्बली के इस विधायक ने किया, उसने पूरे मुल्क को एक बार नहीं कई-कई बार ललकारा, जिसकी जितने कड़े शब्दों में निन्दा की जाये वह कम है।
औवेसी को अपना ‘एक कुरान, एक अल्लाह, एक पैगम्बर, एक नमाज,‘ होने का भी बड़ा घमण्ड है, उसके मुताबिक बुतपरस्तों के तो हर 10 किलोमीटर पर भगवान और उनकी तस्वीरें बदल जाती है, इस मानसिक दिवालियेपन का क्या करें, कौन से पागलखाने में इस पगलेट को भेजे जो उसे बताये कि ‘तुम्हारा एक तुम्हें मुबारक, हमारे अनेक हमें मुबारक’ लेकिन औवेसी, हबीबे मिल्लत, पैगम्बर की उम्मत, यह तुम्हारा प्रोब्लम है कि तुम्हारे पास सब कुछ ‘एक’ ही है, क्योंकि बंद दिमाग न तो महापुरूष पैदा करते है और न ही दर्शन, न पूजा पद्धतियां विकसित होती है और न ही ढे़र सारी किताबें मुकद्दस। वे बस एक से ही काम चलाते है बेचारे, अनेक होने के लिये दिमाग की जरूरत होती है, धर्मान्ध, कट्टरपंथी लोगों का मस्तिष्क ठप्प हो जाता है, वे नयी सोच, वैज्ञानिक समझ, तर्क और बुद्धि विकसित ही नहीं कर पाते है, खुद नहीं सोचते, सिर्फ उनका अल्लाह सोचता है, वे सिर्फ मानते है, जानते कुछ भी नहीं, इसलिये नया कुछ भी नहीं होता, सदियों पुरानी बासी मान्यताएं दिमाग घेर लेती है और हीनता से उपजी कट्टरता लोगों को तालिबानी बना देती है।
और अकबरूद्दीन औवेसी, तुम शायद भूल रहे हो कि सब कुछ ‘एक’ होने के बावजूद तुम्हारे हम बिरादर एक नहीं है। मैं पूछता हूं अकबर, तुम्हारा अल्लाह एक, पैगम्बर एक, नमाज एक, कुरान एक तो फिर मुसलमान एक क्यों नहीं ? क्यों पाकिस्तान में शिया और सुन्नी लड़ रहे है, क्यों ? अहमदिया काटे जा रहे है? क्यों इस्माइली अपनी पहचान छुपा रहे है, क्यों निजारी, क्यों आगाखानी, क्यों अशरफी, क्यों अरबी और क्यों चीनी मुसलमान अपने अपने तौर तरीकों, मस्जिदों, अजानों के लिये संघर्ष कर रहे है, अरे तुम्हारा सब कुछ एक है तो मस्जिदें अलग-अलग क्यों है? मजार पूजकों को बहाबी क्यों गरिया रहे है ? शियाओं की मस्जिदों में क्यों बम फोड़ रहे हो और क्यों इतने सारे मुल्कों में तकसीम हो।
शर्म करो औवेसी, तुम्हारे कई सारे कथित पाक, अल्लाह की शरीयत पर चलने वाले मुल्क पूरे विश्व में भीख का कटोरा लिये खड़े है, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक, पलीस्तीन क्या-क्या गिनाऊं हर जगह मुसलमान पशेमान और परेशान है ? भारत पाक और बांग्लादेश का मुसलमान जातियों में बंटा हुआ है, अरे हिम्मत है तो स्वीकार करो कि तुम्हारे एक होने के तमाम दावों के बावजूद तुम्हारी मस्जिदें, रस्मों रिवाज, पहनावें, अजान और कब्रस्ताान तक अलग-अलग है। मुल्क-ए-हिन्दूस्तान से लड़ने की सौचने से पहले खुद से लड़ो औवेसी, तुम्हारे सालार ने तुम्हें यह नेक सलाहियत नहीं दी कि नरक जैसी जिन्दगी जी रहे गरीब गुरबां मुसलमानों की बहबूदगी और तरक्की के लिये तुम काम करो, शायद न दी होगी, हम दे देते है।
तुम्हें मुम्बई के बम धमाके जायज लगे, क्योंकि यह क्रिया की प्रतिक्रिया थी, फिर उन लोगों का क्या जो गुजरात को गोधरा की प्रतिक्रिया कहते है, तुम्हें टाइगर मेनन और अजमल कसाब जैसे आतंकियों की इतनी चिंता है, निर्दोष और निरपराध भारतीयों की जान की तुम्हारी नजरों में कोई कीमत नहीं, तुममें हमें इंसानियत नहीं हैवानियत नजर आती है, जो खून खराबे की धमकी दे ऐसे आस्तीन के सांपों के फन बिना देरी किये हमें पूरी बेहरमी से कुचल देने चाहिये, क्योंकि ये सांप हमारे मुल्क, हमारी जम्हूरियत और हमारी गंगा जमुनी तहजीब के लिये खतरा है, हजारों बरस बाद आज यह मुल्क रहने लायक जगह बना है, उस जगह को औवेसी जैसे लोग खत्म करें इससे पहले हमे ऐसे लोगों का इलाज करना होगा।
औवेसी को एससी/एसटी को दिये गये रिजर्वेशन से बड़ी कोफ्त है, उसे इससे काबलियत का नाश होते लगता है और वह तभी आरक्षण का पक्षधर बनेगा जबकि मुसलमानों को भी रिजर्वेशन मिले, अकबरूद्दीन तुम जिस काबिलियत का बेसुरा राग निकालते हो, वह तो इस मुल्क के 25 करोड़ दलितों और आदिवासियों के मुकाबले तुम में कुछ भी नहीं है, ऐसी मेहनतकश कौमें विश्व में दूसरी नहीं जिन पर कभी तुमने, कभी उनने, सबने अत्याचार किये, फिर भी वे जिन्दा है क्योंकि उनमें जिजीविषा है, जीने की अदम्य इच्छा है, वे किसी पूजा स्थल में घण्टियां नहीं बजाते, घुटने टेककर हाथ नहीं फैलाते, वे किन्हीं आसमानबापों और किताबों से मदद नहीं मांगते, वे अपने परिश्रम से अपनी तकदीर खुद बनाते है, उन्होंने इस मुल्क को कला, संस्कृति, साहित्य, नृत्य, संगीत, गणंतत्र, बहुलतावाद, प्रकृति के साथ समन्वयन, शांति, करूणा और भाईचारा दिया है, तुम जैसे कूढमगज लोगों ने तो ये शब्द सुने भी नहीं होंगे, उन दलितों और आदिवासियों को ललकारते हो, तुम शायद भूल रहे हो कि देश के इन मूल निवासियों ने तुम्हारे पूर्वजों की तरह अलग मुल्क मांगने की सौदेबाजी नहीं की, इस देश को तोड़ा नहीं, छोड़ा नहीं, इसे रचा है, इसे गढ़ा है, इसलिए आरक्षण जैसा सामाजिक उपचार कोई खैरात नहीं दलितों आदिवासियों का अधिकार है, उनसे मुकाबला मत करो वर्ना मिट जाओगे औवेसी, हम किसी अल्लाह, ईश्वर, गाॅड, यहोवा में यकीन नहीं करते है, कोई वेद, पुरान, कुरान, बाइबिल हमारा मार्गदर्शन नहीं करती, हम अपनी तकरीर और तदबीर खुद रचते है, बेहतर होगा कि इस मुल्क के मूल निवासियों को कभी मत छेड़ो, वर्ना वो हश्र करेंगे कि तुम जैसे देशद्रोहियों और संविधान विरोधियों की रोम-रोम कांपने लगे, हमें मत ललकारों, हमें मत छेड़ो और ये गीदड़ भभकियां अपने तक सीमित रखो, आईन्दा दलितों, आदिवासियों के रिजर्वेशन पर कुछ भी कहने से बचो तो ही तुम्हारे हक में अच्छा होगा।
औवेसी, तुम्हें अपने मुसलमान होने पर बड़ा नाज है, हैदराबाद में आने पर बता देने की धमकियां देते हो, जरा हैदराबाद से बाहर भी निकलों, हिन्दुस्तान के हजार कोनों में तुम्हें आम हिन्दुस्तानी कभी भी सबक सिखा देंगे, क्योंकि तुम जैसे कट्टरपंथी की इस मुल्क को कोई जरूरत नहीं है, तुम्हारे बिना यह मुल्क और अधिक अच्छा होगा।
रही बात मुल्क-ए-हिन्दुस्तान को बर्बाद करने की तो तुम जैसे लोगों से कुछ होने वाला नहीं है, इतनी ही ताकत थी तो निजाम हैदराबाद के वक्त फौज के होते दिखा देते मर्दानगी, नहीं दिखा पाये, अब भी नहीं दिखा पाओगे, भारत कभी मिट नहीं सकता यह दाउद इब्राहीमों, टाइगर मेननों, अजमल कसाबों और अकबररूद्दीन औवेसियों के रहमो करम पर नहीं बना है, इसलिये मुल्क की तबाही और बर्बादी के सपने मत पालना, खून खराबे की धमकियां मत देना, तुम्हारे हक में यही अच्छा होगा कि संविधान के दायरे में रहो, कोई शिकायत है तो लोकतांत्रिक संघर्ष करो, भारतीय होने का गर्व करो, क्योंकि किसी भी इस्लामी कंट्री में तो तुम्हें कोई एमएमए भी नहीं बनायेगा किसी गली मौहल्ले में पड़े मिलोगे, यही एक ऐसा देश है जिसमें सब लोग आराम में है, जी रहे है, अपनी-अपनी बकवास भी कर रहे है, फिर भी ऐश कर रहे है, किसी और मुल्क में होकर उस मुल्क को चुनौती देते तो फिर तुम सिर्फ यू-ट्यूब पर ही नजर आते, मगर यह अच्छा देश है, सभ्य और सज्जन लोगों का देश है, कई बार तो लगता है कि डरपोक और कायरों का देश है जिसमें तुम जैसे विषैले नाग फन उठाकर फूंफकारने के बावजूद भी मौजूद है।
अकबरूद्दीन औवेसी, बेशक अपने लोगों के हित में आवाज उठाओ, उनके हक में लड़ो, संघर्ष करो, हम भी करते है मगर मुल्क की तबाही के सपने मत देखना क्योंकि इस तरह की बातें कोई भी भारतीय बर्दाश्त नहीं करेगा, ऐसा न हो कि देश की जवानी जाग जाये और तुम जैसे कट्टरपंथियों, धर्मान्धों और फसादपरस्तों को सड़कों पर दौड़ा-दौड़ा कर निपटें। काश, वह दिन न आये, लेकिन कभी भी आ सकता है बस इतना याद रखना।
जय भीम-जय भारत
(लेखक खबरकोश डॅाटकॅाम के सम्पादक है, उनसे bhanwarmeghwanshi@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते है।)