Sunday, December 20, 2015

देश का दुश्मन नहीं है भारतीय मुसलमान


राजस्थान के दौसा में पाकिस्तानी झण्डा फहराये जाने तथा टौंक के मालपुरा में आई एस आई एस के पक्ष में नारे लगाये जाने और जयपुर में आतंकी नेटवर्क खड़ा करने में जुटे मोहम्मद सिराजुद्दीन को गिरफ्तार किये जाने के बाद यह चर्चा बहुत आम हो गई है कि राजस्थान  प्रदेश
आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने की सबसे सुरक्षित जगह बन गया है ! 
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     उत्तरप्रदेश के एक स्वयंभू हिन्दू महासभाई कमलेश तिवाड़ी द्वारा हजरत मोहम्मद को अपमानित करने वाली टिप्पणी करने के विरोध में हुये देशव्यापी प्रदर्शन राजस्थान के भी विभिन्न शहरों में आयोजित किये गये.साम्प्रदायिक रूप से अतिसंवेदनशील मालपुरा कस्बे में भी मुस्लिम युवाओं ने अपने बुजुर्गों की मनाही के बावजूद एक प्रतिरोध जलसा किया.हालांकि शहर काजी और कौम के बुजुर्गों ने बिना मशवरे के कोई भी रैली निकालने से युवाओं को रोकने की भरपूर असफल कोशिस की.जैसा कि मालपुरा के निवासी वयोवृद्ध इकबाल दादा बताते है कि -' हमने उन्हें मना कर दिया था और शहर काजी ने भी इंकार कर दिया था ,मगर रसूल की शान के खिलाफ की गई अत्यंत गंदी टिप्पणी से युवा इतने अधिक आक्रोशित थे कि वे काजी तक को हटाने की बात करने लगे थे '
     अंतत: मालपुरा के युवाओं की अगुवाई में 11दिसम्बर को एक रैली जामा मस्जिद से शुरू हो कर कोर्ट होते हुये तहसीलदार को ज्ञापन देने पहुंची .शांतिपूर्ण तरीके से ज्ञापन दे दिया गया मगर दूसरे दिन सोशल मीडिया में वायरल हुये एक वीडियो के मुताबिक रैली से लौटते हुये मुस्लिम नवयुवकों ने 'आर एस एस- मुर्दाबाद' तथा 'आई एस आई एस- जिन्दाबाद' के नारे लगाये.जब मुस्लिम समाज के मौतबीर लोगों को पुलिस के समक्ष यह वीडियो दिखाया गया तो उन्हें पहले तो यकीन ही नहीं हुआ ,फिर उन्होंने अपने बच्चों की इस तरह की हरकत के लिये तुरंत माफी मांग ली और मामले को तूल नहीं देने का आग्रह किया,ताकि सौहार्द बरकरार रहे,मगर
मालपुरा के हिन्दुवादी संगठन इस  मांग पर अड़ गये कि दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उनको तुरंत गिरफ्तार किया जाये.सूबे में सत्तारूढ़ विचारधारा के राजनैतिक दबाव के चलते किसी व्यक्ति विशेष द्वारा बनाये गये विडियो को आधार बना कर मुकदमा दर्ज कर लिया गया तथा सलीमुद्दीन रंगरेज ,फिरोज पटवा ,वसीम ,शाहिद ,शाकिर ,अमान तथा वसीम सलीम सहित 7 लोगो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.
       गिरफ्तार किये गये 60 वर्षीय राशन डीलर सलीमुद्दीन के बेटे नईम अख्तर का कहना है कि-' मेरे वालिद एक जमीन के सौदे के सिलसिले में कोर्ट गये थे ,वे रैसी मैं शरीक नहीं थे  ,मगर पुलिस कहती है कि उनका चेहरा वीडियो में दिख रहा है जहां नारे लगाये जा रहे थे ,इसलिये उन्हें गिरफ्तार किया गया है'
मालपुरा के मुस्लिम समुदाय का आरोप है कि पुलिस जानबूझकर बेगुनाहों को पकड़ रही है.इतना ही नहीं बल्कि धरपकड़ अभियान के दौरान सादात मौहल्ले में पुलिस द्वारा मुस्लिम औरतों के साथ निर्मम मारपीट और बदसलूकी भी की गई.पुलिस दमन की शिकार 50 वर्षीय बिस्मिल्ला कहती है कि हम बहुत सारी महिलायें कुरान पढ़कर लौट रही थी ,तब घरों में घुसते हुये मर्द पुलिसकर्मियों ने हमें मारा . वह चल फिरने में असहाय महसूस कर रही है.सना  ,जमीला ,फहमीदा ,नसीम आदि महिलाओं पर भी पुलिस ने लाठियां भांजी ,किसी को चोटी पकड़ कर घसीटा तो किसी को पैरों और जंघाओं पर मारा एवं भद्दी गालियां दे कर अपमानित किया.पुलिस तीन औरतों -फरजाना ,साजिदा और आरिफा को पुलिस पर पथराव करने  और राजकार्य में बाधा उत्पन्न करने के जुर्म में गिरफ्तार कर ले गई.जहां से फरजाना को शांतिभंग के आरोप में पाबंद कर देर रात छोड़ दिया गया ,वहीं आरिफा और साजिदा को जेल भेज दिया गया .
     उल्लेखनीय है कि मालपुरा में आतंकवादी संगठनों के पक्ष में कथित नारे लगाने के वीडियो को वायरल किये जाने के बाद राज्य भर में इसकी प्रतिक्रिया हुई.हिन्दुत्ववादी संगठनों ने कुछ जगहों पर इसके विरूद्ध में ज्ञापन भी दिये और देशविरोधी तत्वों पर अंकुश लगाने की मांग की.जो विडियो लोगो को उपलब्ध है उसे देखने पर ऐसा लगता है कि वापस लौटती रैली में नारे लगाते एक युवक समूह पर ये नारे सुपर इम्पोज किये गये है .क्योंकि नारों की घ्वनि और रैली में चल रहे लोगो के मध्य कोई तारतम्य ही नहीं दिखाई पड़ता है .जिस जगह का यह विडियो है ,वहां के दुकानदारों का जवाब भी स्पष्ट नहीं है ,वे यह तो कहते है कि मालपुरा में पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे आम बात है ,मगर ये नारे कब और कहां लगते है तथा उस दिन क्या उन्होंने आई एस आई एस के पक्ष में नारे सुने थे ? इसका जवाब वे नहीं देते ,इतना भर कहते है की शायद आगे जा कर लगाये हो या कोर्ट में लगा कर आये हो.
    विचार योग्य बात यह है कि ज्ञापन के दिन ना किसी समाचार पत्र ,ना  किसी टीवी चैनल और ना ही गुप्तटर एजेंसियों और ना ही पुलिस या प्रशासन को ये नारे सुनाई पड़े .लेकिन अगले दिन अचानक एक वीडियो जिसकी प्रमाणिकता ही संदिग्ध है ,उसे आधार बना कर पुलिस मालपुरा के मुस्लिम समाज को देशप्रेम की तुला पर तोलने लगती है तथा उनमें देशभक्ति की मात्रा कम पाती है और फिर गिरफ्तारियों के नाम पर दमन और दशहत का जो दौर चलता है ,वह दिन बदिन बढ़ते ही जाता है.हालात इतने भयावह हो जाते है कि लोग अपने आशियानों पर ताले लगा कर दर ब दर भागने को मजबूर कर दिये जाते है.
   मालपुरा का घटनाक्रम चर्चा में ही था कि एक बड़े समाचार पत्र में दौसा के हलवाई मौहल्ले के निवासी 'खलील के घर की छत पर पाकिस्तानी झण्डा' फहराये जाने की सनसनीखेज खबर साया हो जाती है .खलील को तो प्रथम दृष्टया ही देशद्रोही घोषित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई ,मगर दौसा के मुस्लिम समाज ने पूरी निर्भिकता से इस शरारत का मुंह तोड़ जवाब दिया और पुलिस तथा प्रशासन को बुलाकर स्पष्ट किया कि यह चांद तारा युक्त हरा झण्डा इस्लाम का है ,ना कि पाकिस्तान का ! पुलिस अधीक्षक गौरव यादव को इस उन्माद फैलाने वाली हरकत करने की घटना पर स्पष्टीकरण देना पड़ा तथा उन्होनें माना कि यह गंभीर चूक हुई है ,एक धार्मिक झण्डे को दुश्मन देश का ध्वज बताना शरारत है.मुस्लिम समुदाय की मांग पर चार मीडियाकर्मियों के विरूद्ध मुकदमा दर्ज किया गया और खबर लिखने वाले पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया गया.खबर प्रकाशित करने वाले मीडिया समूह ने इसे पुलिस की नाकामी करार देते हुये स्पष्ट किया कि उनकी खबर का आधार पुलिस द्वारा दी गई सूचना ही थी ,पुलिस ने अपनी असफलता छिपाने की गरज से मीडिया के लोगों को बलि का बकरा बना दिया है.
जैसा कि इन दिनों ईद मिलादुन्नबी की तैयारियों के चलते घरों पर चांद तारे वाला हरा झण्डा लगभग हर जगह लगा हुआ दिखाई पड़ जाता है ,उसे पाकिस्तानी झण्डे के साथ घालमेल करके मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार का अभियान चलाया जा रहा है .
    भीलवाड़ा में पिछले दिनों एक मुस्लिम तंजीम के जलसे के बाद ऐसी ही अफवाह उड़ाते एक शख्स को मैने जब चुनौती दी कि वह साबित करे कि जिला कलक्ट्रेट पर प्रदर्शन में पाकिस्तानी झण्डा लहराया गया है तो वह माफी मांगने लगा.इसी तरह फलौदी में पाक झण्डे फहराने सम्बंधी वीडियो होने का दावा कर रहे एक व्यक्ति से विडियो मांगा गया तो उसने ऐसा कोई वीडियो होने से ही इंकार कर दिया.तब ये कौन लोग है जो संगठित रूप से ' पाकिस्तानी झण्डे ' के होने का गलत प्रचार कर रहे है.यह निश्चित रूप से वही अफवाह गिरोह है जो हर बात को उन्माद फैलाने और दंगा कराने में इस्तेमाल करने में महारत हासिल कर चुका है.
इन कथित राष्ट्रप्रेमियों को मीडिया की बेसिर पैर की खबरें खाद पानी मुहैया करवाती रहती है.भारत का कारपोरेट नियंत्रित  जातिवादी मीडिया लव जिहाद ,इस्लामी आतंतवाद ,गौ तस्करी ,पाकिस्तानी झण्डा ,सैन्य जासूसी और आतंकी नेटवर्क के जुमलों के आधार पर चटपटी खबरें परोस कर मुस्लिम समुदाय के विरूद्ध नफरत फैलाने के विश्वव्यापी अभियान का हिस्सा बन रहा है . आतंकवाद की गैर जिम्मेदाराना  पत्रकारिता का स्वयं का चरित्र ही अपने आप में किसी  आतंकवाद से कम नहीं दिखाई पड़ता है.हद तो यह है कि हर पकड़ा ग़या 'संदिग्ध' मुस्लिम दूसरे दिन  'दुर्दांत आतंकी ' घोषित कर दिया जाता है और उसका नाम 'अलकायदा' 'इंडियन मुजाहिद्दीन ' 'तालिबान ' अथवा 'इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एण्ड सिरिया ' से जोड़ दिया जाता है.आश्चर्य तो तब होता है जब मीडिया गिरफ्तार संदिग्ध को उपरोक्त में किसी एक आतंकी नेटवर्क का कमाण्डर घोषित करके ऐसी खबरें प्रसारित व प्रकाशित करता है ,जैसे कि सारी जांच मीडियाकर्मियों के समक्ष ही हुई हो.अपराध सिद्ध होने से पूर्व ही किसी को आतंकी घोषित किये जाने की यह मीडिया ट्रायल एक पूरे समुदाय को शक के दायरे में ले आई है .इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि आज इस्लाम और आतंकवाद को एक साथ देखा जाने लगा है.इसी दुष्प्रचार का नतीजा है कि आज हर दाढ़ी और टोपी वाला शख्स लोगों की नजरों में 'संदिग्ध आतंकी ' के रूप में चुभने लगा है.
   हाल ही में जयपुर में इण्डियन ऑयल कार्पोरेशन के मार्केटिंग मैनेजर सिराजुद्दीन को 'एन्टी टेरेरिस्ट स्क्वॉयड' ने आई एस आई एस के नेटवर्क का हिस्सा होने के आरोप में गिरफ्तार किया .मीडिया के लिये यह एक महान उपलब्धि का क्षण बन गया.पल पल की खबरें परोसी जाने लगी-" आतंकी नेटवर्क का सरगना सिराजुद्दीन यहां रहता था ,यह करता था ,वह करता था.सोशल मीडिया के जरिये 13 देशों के चार लाख लोगों से जुड़ा था ,अजमेर के कई युवाओं के सम्पर्क में था.सुबह मिस्र ,इंडोनेशिया जैसे देशों में रिपोर्ट भेजता था ,तो शाम को खाड़ी देशों तथा दक्षिणी अफ्रिकी देशों को रिपोर्ट भेजता था.फिदायनी दस्ते तैयार कर रहा था.आदि इत्यादि "
दस दिन आतंक की खबरों का बाजार गर्म रहा ,सिराजुद्दीन को इस्लामिक स्टेट का एशिया कमाण्डर घोषित कर दिया गया ,जबकि जांच जारी है और जांच एजेन्सियों की और से इस तरह की जानकारियों का कोई ऑफिशियल बयान जारी नहीं हुआ है.गिरफ्तार किये गये मोहम्मद सिराजुद्दीन के पिता गुलबर्गा कर्नाटक निवासी मोहम्मद सरवर कहते है कि उनका बेटा पक्का वतनपरस्त है ,वह अपने मुल्क के खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकता है.सिराजुद्दीन की पत्नि यास्मीन के मुताबिक -' उसने कभी भी  उसको कुछ भी रहस्यमय हरकत करते हुये नहीं देखा ,वह एक नेक धार्मिक मुसलमान के नाते लोगो की सहायता करनेवाला इंसान है.उसके बारे में यह सब सुनकर मैं विश्वास ही नहीं कर पा रही हूं '
    खैर ,सच्चाई क्या है ,इसके बारे में कुछ भी कयास लगाना अभी जल्दबाजी ही होगी और जिस तरह का हमारी खुफिया एजेन्सियां ,पुलिस और आतंकरोधी दस्तों का पूर्वाग्रह युक्त साम्प्रदायिक व संवेदनहीन चरित्र है ,उसमें न्याय या सत्य के प्रकटीकरण की उम्मीद सिर्फ एक मृगतृष्णा ही है.यह देखा गया है कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में बरसों बाद 'कथित आतंकवादी' बरी कर दिये जाते है ,मगर तब तक उनकी जवानी बुढ़ापा बन जाती है.परिवार तबाह हो चुके होते है .
कुछ अरसे से पढ़े लिखे ,सुशिक्षित ,आई टी एक्सपर्ट भारतीय मुसलमान नौजवान खुफिया एजेन्सियों और आतंकवादी समूहों के निशाने पर है ,उन्हें पूर्वनियोजित योजना के तहत तबाह किया जा रहा है.इस तबाही या दमन चक्र के विरूद्ध उठने वाली कोई भी आवाज देशद्रोह मान ली जा रही है ,इसलिये राष्ट्र राज्य से भयभीत अल्पसंख्यक समूह अब बोलने से भी परहेज करने लगा है और बहुसंख्यक तबका मीडियाजनिक विभ्रमों का शिकार हो कर राज्य प्रायोजित दमन को 'उचित' मानने लगा है.जो कि अत्यंत निराशाजनक स्थिति है.
     राजस्थान में गोपालगढ़ में मुस्लिम नरसंहार के आरोपी खुलेआम विचरण करते है.नौगांवा का होनहार मुस्लिम छात्र आरिफ जिसे पुलिस ने घर में घुसकर एके सैंतालीस से भून डाला ,उसके हत्यारे पुलिसकर्मियों को सजा नहीं मिलती है.भीलवाड़ा के इस्लामुद्दीन नामक नौजवान की जघन्य हत्या करने वाले हत्यारों का पता भी नहीं चलता है.गौ भक्तों द्वारा पीट पीट कर मार डाले गये डीडवाना के गफूर मियां के परिवार की सलामती की कोई चिन्ता नहीं करता है.हर दिन होने वाली साम्प्रदायिक वारदातों की आड़ में मुस्लिमों को लक्षित कर दमन चक्र निर्बाध रूप से जारी है.कहीं भी कोई सुनवाई नहीं है.लोग थाना ,कोर्ट कचहरियों में चक्कर काटते काटते बेबसी के कगार पर  है और उपर से शौर्यदिवस के जंगी प्रदर्शनों में 'संघ में आई शान -मियांजी जाओ पाकिस्तान ' या ' अब भारत में रहना है तो हिन्दु बन कर रहना होगा ' जैसे नारे जख्मों पर नमक छिड़क रहे है.
  हर दिन दूरियां बढ़ रही है,बेलगाम बयानबाजी ,दिन प्रतिदिन गांव गांव में बढ रहे संचलन और हथियारों को लहराती हुई रैलियां किसी गृहयुद्ध के बीज बोती दिख रही है.आश्चर्य की बात तो यह है कि हम अपना घर नहीं सम्भाल पा रहे है ,अपने ही लोगों का भरोसा नहीं जीत पा रहे है और हमारे रक्षामंत्री अमेरिका की सैर से लौट कर कह रहे है कि -संयुक्त राष्ट्र कहेगा तो हमारी सेना "इस्लामिक स्टेट" से लड़ने को तैयार है .समझ नहीं आता कि हम आ बैल मुझे मार का काम क्यों करना चाहते है.हमें समझना होगा कि हथियारों का  सौदागर अमेरिका कभी किसी का यार नहीं  हुआ है.उसके बहकावे में आकर हमें किसी युद्ध में अपनी सेना को झौंकने की गलती क्यों करनी चाहिये ? हम अपने इर्द गिर्द के सभी मुल्कों को वैसे भी दुश्मन बना ही चुके है.हाल ही में हमने अपनी असफल विदेश नीति के चलते नेपाल जैसे  स्वभाविक पड़ौसी मित्र तक को अपना विरोधी और चीन को दोस्त बना डाला है .अब हम क्या सारी मुस्लिम दुनिया को भी अपना दुश्मन बना लेंगे ? गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि कहीं हम अमेरिका जैसे देशों के बिछाये जाल में तो नहीं फंसते जा रहे है ? हमारा अमेरिकी प्रेम हमें डुबो भी सकता है .स्थिति यह होती जा रही है कि वाशिंगटन ही पूरा विमर्श तय कर रहा है.इस्लामिक आतंकवाद जैसी शब्दावली से लेकर किनसे लड़ना है और कब लड़ना है ? ईराक से लेकर अफगानिस्तान तक और सिरिया ये लेकर लीबिया तक आतंकी समूहों का निर्माण ,उनके सरंक्षण -संवर्धन में अमेरिका की हथियार इंडस्ट्री और सत्ता सब लगे हुये है .वैश्विक वर्चस्व की इस लड़ाई में पश्चिम का नया दुश्मन मुसलमान है ,मगर भारतीय राष्ट्र राज्य के लिये मुसलमान दुश्मन नहीं है .वे देश के सम्मानित नागरिक है.राष्ट्र निर्माण के सारथी है ,उनसे दुश्मनों जैसा सलूक बंद  होना चाहिये .उनके देशप्रेम पर सवालिया निशान लगाने की प्रवृति से पार पाना होगा.झण्डा ,दाढ़ी ,टोपी ,मदरसे ,आबादी ,मांसाहार जैसे कृत्रिम मुद्दे बनाकर किया जा रहा उनका दमन रोकना होगा.उन्हें न्याय और समानता के साथ अवसरों में समान रूप से भागीदार बनाना होगा ,ताकि हम एक शांतिपूर्ण तथा सुरक्षित विकसित राष्ट्र का स्वप्न पूरा कर सकें .
- भँवर मेघवंशी
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है , bhanwarmeghwanshi@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है

Sunday, December 6, 2015

“ राजस्थान सरकार का दलितों को तोहफा “


      अम्बेडकर लॉ यूनिवर्सिटी बंद करने का फैसला !
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एक तरफ केंद्र की भाजपा सरकार संविधान निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर की 125 वी जयंती का समारोह मना रही है ,वहीँ दूसरी तरफ राजस्थान की वसुंधराराजे सरकार ने अम्बेडकर के नाम पर स्थापित विधि विश्वविध्यालय को बंद करने का निर्णय ले लिया है .लोग पूछ रहे है कि क्या यह सरकार के दो साल पूरे होने पर राज्य सरकार द्वारा दलितों को दिया गया तोहफा है ?
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राज्य के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्रसिंह राठौड़ ने विगत दिनों हुई मंत्रीमंडल की बैठक के बाद खबरनवीसों को बताया था कि राज्य सरकार ने डॉ भीमराव अम्बेडकर लॉ यूनिवर्सिटी को बंद करके इसके स्थान पर जयपुर में ‘अम्बेडकर पीठ - सेंटर फॉर एक्सीलेंस’ का गठन करने का निर्णय लिया है .राठौड़ ने इस फैसले का औचित्य बताते हुए कहा कि वर्ष 2012 -13 में अशोक गहलोत के शासन काल में अम्बेडकर लॉ यूनिवर्सिटी स्थापित की थी, मगर पूर्ववर्ती सरकार ने किसी भी प्रकार की वित्तीय व्यवस्था नहीं की ,ना शैक्षणिक अनुभाग खोले ,ना फैकल्टी नियुक्त की ,ना भूमि आवंटित की गई और ना ही प्रवेश सम्बन्धी कार्यवाही की गयी . सिर्फ कागजों में ही विश्वविध्यालय खोल दिया गया और कुलपति की भी नियुक्ति कर दी गई .इसलिये इस कागजी विश्वविध्यालय को बंद करके अम्बेडकर पीठ स्थापित करने का राज्य मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया है .
राज्य सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि राज्य सरकार गलतबयानी करके लोगों को गुमराह कर रही है .उनकी सरकार ने डॉ अम्बेडकर के नाम पर यह विश्वविध्यालय स्थापित किया था और जरुरी संसाधन भी उपलब्ध करवाए थे .अगर कहीं कोई कमी भी रह गई थी तो इस सरकार को भी दो साल का वक़्त मिला,जिसमे वित्तीय,शैक्षणिक ,फैकल्टी लगाने जैसी निरंतर प्रक्रियाओं की पालना करवाई जा सकती थी और यूनिवर्सिटी को मज़बूत बनाया जा सकता था ,मगर यह सरकार चाहती ही नहीं है कि संविधान निर्माता अम्बेडकर के नाम पर कोई विश्वविध्यालय काम करे ,इसलिये डॉ अम्बेडकर युनिवर्सिटी को बंद कर उसकी जगह एक सेंटर खोला जा रहा है .
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य सरकार के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसकी कड़ी निंदा की तथा कहा कि एक ओर तो सरकार अम्बेडकर के नाम पर शुभकामनायें दे रही है ,दूसरी ओर उनके नाम को ही मिटाने की कोशिस कर रही है ,इससे सरकार का दलित विरोधी रवैया सामने आ गया है .
गहलोत के बोलने के बाद राज्य के दलित संगठनों की भी नींद खुली तथा देर से ही सही मगर राज्य भर में राजस्थान सरकार के इस निर्णय की चौतरफा आलोचना शुरू हो गयी .हालाँकि आश्चर्यजनक रूप से अभी भी दलित बहुजनों की राजनीती करने वाले दल एवं संगठन अभी भी मौन है .बसपा हो अथवा भाजपा का अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ ,दोनों ही समान रूप से चुप है .ख़ामोशी तो कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग ने भी अख्तियार की हुयी है ,उसकी ओर से कोई बयान तक इस विषय पर नहीं आना जनचर्चा का विषय है .
हालाँकि कुछ दलित और मानव अधिकार संगठनों ने इस मुद्दे पर सरकार की मंशा पर सवाल उठाये है ,मगर देखा जाये तो अम्बेडकर यूनिवर्सिटी को बचाने के लिए सबसे दमदार आवाज़ पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य के जनप्रिय नेता अशोक गहलोत की रही ,उन्होंने ही सबसे पहले वसुंधरा सरकार के अम्बेडकर यूनिवर्सिटी बंद करने के निर्णय पर तुरंत प्रतिक्रिया दी तथा कहा कि वसुंधरा सरकार अम्बेडकर के नाम पर खडी की गयी विरासत के साथ खिलवाड़ कर रही है.
राजस्थान सरकार के डॉ भीमराव अम्बेडकर लॉ यूनिवर्सिटी बंद करने के फैसले को अदूरदर्शी और तानाशाहीपूर्ण बताते हुये कई दलित संगठनों ने सरकार को चेताया है कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे और अम्बेडकर लॉ यूनिवर्सिटी को बंद नहीं करें वर्ना राज्य व्यापी आन्दोलन चलाया जायेगा .इसकी प्रथम कड़ी में विभिन्न जिलों में इसे लेकर ज्ञापन भी दिये गये है .यह भी योजना बनाई गयी है कि 6 दिसम्बर को अम्बेडकर के 59वें महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर राज्य भर में होने वाले समारोहों में राज्य शासन के इस अम्बेडकर विरोधी निर्णय का विरोध किया जायेगा .
अब देखना यह है कि अम्बेडकर के नाम पर बड़ी बड़ी बातें कर रही भारतीय जनता पार्टी की राज्य सरकार अपना फैसला बदलती है या अपनी आदत के मुताबिक वह यह फैसला भी अपरिवर्तनीय  ही बनाये रखेगी ,भले ही उस पर दलित विरोधी होने का कितना ही आरोप क्यों ना लगा दिया जाये .
-    भंवर मेघवंशी
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है )

अम्बेडकर पर संसद में चर्चा


 


                     विचार दरकिनार ,सिर्फ गुणगान !

भारतीय संसद ने संविधान निर्माण में अम्बेडकर के योगदान पर दो दिन तक काफी सार्थक चर्चा करके एक कृतज्ञ राष्ट्र होने का दायित्व निभाया है .इस चर्चा ने कुछ प्रश्नों के जवाब दिये है तो कुछ नए प्रश्न खड़े भी किये है ,जिन पर आगे विमर्श जारी रहेगा .दो दिन तक सर्वोच्च सदन का चर्चा करना अपने आप में ऐतिहासिक माना जायेगा .यह इसलिये भी महत्वपूर्ण हो गया कि जो पार्टियाँ गाहे बगाहे अब तक डॉ अम्बेडकर के संविधान निर्माता होने पर संदेह प्रकट करती रही , आलोचना करती रही  ,उनके भी सुर बदले है तथा उन्होंने भी माना कि संविधान निर्माण में डॉ अम्बेडकर का योगदान अतुलनीय है ,उसको नकारा नहीं जा सकता है .

जो लोग यह कहकर अम्बेडकर के महत्व को कम करने की कोशिश करते है कि संविधान सभा के अध्यक्ष तो डॉ राजेन्द्र प्रसाद थे .अम्बेडकर तो महज़ ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष थे .जिसमे उनके समेत कुल 9 सदस्य थे ,जिसमे के एम मुंशी ,गोपाल स्वामी अयंगार और कृष्ण स्वामी अय्यर जैसे विद्वान भी शामिल थे .अकेले अम्बेडकर ने क्या किया .अम्बेडकर के आलोचकों को संविधान सभा की बहस और कार्यवाही का अध्ययन करना चाहिए ताकि अम्बेडकर के योगदान को समझा जा सके .अब यह ऐतिहासिक सत्य है कि जो 9 लोग प्रारूप समिति में थे ,उनमे से एक ने त्यागपत्र दे दिया था .एक अमेरिका चला गया .दो सदस्य अपने स्वास्थ्य कारणों से दिल्ली से दूर रहे .एक राजकीय मामलों में व्यस्तता के चलते समय नहीं दे पाया और शेष लोग भी अपने अपने कारणों से प्रारूप निर्माण में अपनी भागीदारी नहीं निभा सके .इसलिए संविधान का प्रारूप तैयार करने का सारा उत्तरदायित्व अकेले  डॉ अम्बेडकर के कन्धों पर आ पड़ा जिसे उन्होंने बखूबी निभाया .इसीलिए उन्हें भारतीय संविधान का असली निर्माता कहा जाता है .

संसद में पहले दिन की बहस का आगाज़ करते हुए केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथसिंह ने कहा कि अम्बेडकर का इस देश में बहुत अपमान हुआ ,लेकिन उन्होंने कभी देश छोड़ने की बात नहीं सोची .वे सच्चे अर्थों में राष्ट्रऋषि थे .दुसरे दिन बहस का समापन करते हुए प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अम्बेडकर ने जहर खुद पिया और अमृत हमारे लिए छोड़ गए .गृहमंत्री का डॉ अम्बेडकर को राष्ट्रऋषि कहना और प्रधानमंत्री का उन्हें हलाहल पीनेवाला नीलकंठ निरुपित करना कई सवाल खड़े करता है .जब राजनाथसिंह कहते है कि देश में अम्बेडकर का बहुत अपमान हुआ ,तो उन्हें और साफगोई बरतनी चाहिये और देश को यह बताना चाहिये था कि आखिर वो कौन लोग थे ,जिन्होंने अम्बेडकर को अपमानित किया .तत्कालीन व्यवस्था और धार्मिक कारण तो थे ही जिनको अम्बेडकर ने आगे चलकर ठुकरा दिया था ,लेकिन आज़ादी के आन्दोलन के कई चमकते सितारों ने भी अम्बेडकर को अपमानित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी .उन पर कालाराम मंदिर प्रवेश आन्दोलन के वक़्त पत्थर बरसाने वाले कौन लोग थे ? उनकी उपस्थिति के बाद उन स्थानों को गंगाजल और गौमूत्र छिडक कर पवित्र करने वाले लोग कौन थे ? वो कोन थे जिन्होंने अछूतों से पृथक निर्वाचन का हक छीन लिया था और डॉ अम्बेडकर को खून के आंसू रोने को विवश किया था .वो कौनसी विचारधारा के लोग थे जिन्होंने अम्बेडकर को हिन्दू कोड बिल नहीं लाने दिया और अंततः उन्हें भारी निराशा के साथ केन्द्रीय मंत्रिमंडल छोड़ना पड़ा था .इससे भी आगे बढ़ कर एक दिन उन्हें देश ना सही बल्कि धर्म को छोड़ना पड़ा .इन बातों पर भी चर्चा होती तो कई कुंठाओं को समाधान मिल सकता था  .जब प्रधानमन्त्री यह स्वीकारते है कि डॉ अम्बेडकर को जहर खुद पीना पड़ा तो वो क्या जहर था ,उससे देश को अवगत होना चाहिये .यह देश को जानने का हक है कि किन परिस्थितियों में अम्बेडकर ने अपना सार्वजनिक जीवन जिया और सब कुछ सहकर भी देश को अपना सर्वश्रेष्ठ देने की महानता दिखाई .

संसद में यह पहली बार हुआ कि एक कांग्रेसी सांसद मल्लिकार्जुन खरगे ने बामसेफ के संस्थापक बहुजन राजनीती के सूत्रधार कांशीराम के केडर केम्पों की भाषा का इस्तेमाल किया .उन्होंने राजनाथसिंह को जोरदार जवाब देते हुए एक नयी बहस को जन्म दिया है .हालाँकि मीडिया ने उसे बहुत खूबसूरती से दबा दिया है .आश्चर्य होता है कि असहिष्णुता पर आमिर खान के बयान को तिल का ताड़ बनाने वाला मीडिया ,हर छोटी छोटी प्रतिक्रिया को विवादित बयान में बदलनेवाला मीडिया मल्लिकार्जुन खरगे के बयान पर कैसे मौन रह गया .देश भर से कोई नहीं उठ खड़ा हुआ कि खरगे ने ऐसा क्यों कहा कि –“आप विदेशी लोग है ,आप आर्य है ,बाहर से आये है .अम्बेडकर और हम लोग तो इस देश के मूलनिवासी है ,पांच हजार साल से मार खा खा कर भी हम यहीं बने हुए है “. खरगे के बयान में इस देश में बर्षों से जारी आर्य- अनार्य ,आर्य -द्रविड़ ,यूरेशियन विदेशी आर्यन्स की अवधारणा पर नए सिरे से विमर्श पैदा कर दिया है ,लेकिन सत्तापक्ष और मीडिया ने बहुत ही चालाकी से खरगे के बयान को उपेक्षित कर दिया है ताकि इस बात पर कहीं कोई बहस खड़ी ना हो जाये और सच्चाई की परतें नहीं उतरने लगे .यह विचारधाराओं के अवश्यम्भावी संघर्ष को टालने की असफल कोशिश लगती है .इस एक बयान से मल्लिकार्जुन खरगे देश के अनार्यों के नए हीरो के रूप में उभरते दिखाई दे रहे है ,हालाँकि वे अपने इस प्रकार के बयान पर कितना मजबूती से टिके रहते है ,यह तो भविष्य में ही पता चल पायेगा मगर खरगे की साफगोई ने दलित बहुजन मूलनिवासी आन्दोलन में नई वैचारिक प्राणवायु संचरित की है .

इस बहस का सबसे बड़ा फलितार्थ आरक्षण और संविधान को बदलने की दक्षिणपंथी बकवास को मिला एक मुकम्मल जवाब माना जा सकता है .लुटियंस के टीले से नागपुर के केशव भवन को मिला यह अब तक का सबसे कड़वा जवाब है ,जिसमें संघ के प्रचारक रह चुके स्वयंसेवक प्रधानमन्त्री ने परमपूज्य सरसंघचालक मोहन राव भागवत को दो टूक शब्दों में कह दिया है कि ना तो आरक्षण की व्यवस्था में कोई बदलाव किया जायेगा और ना ही संविधान बदला जायेगा ,क्योंकि ऐसा करना आत्महत्या करने के समान होगा .इस कड़े जवाब से देश के वंचित समुदाय में एक राहत देखी जा रही है .अभी यह कहना जल्दबाजी ही होगी कि ऐसा कह कर मोदी देश के दलित वंचितों का भरोसा जीत पाने में वे कामयाब हो गए है ,लेकिन जिस तरह से बिहार चुनाव परिणाम से लेकर भारतीय संसद की बहस ने भागवत की किरकिरी की है ,उससे हाशिये का तबका ख़ुशी जरुर महसूस कर रहा है .

संसद में हुयी दो दिवसीय चर्चा और राष्ट्रव्यापी संविधान दिवस का मनाया जाना भारतीय राष्ट्र राज्य के लिए एक ऐतिहासिक आयोजन है ,मगर इन सबके मध्य बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर को अतिमानव बना कर उनके अवतारीकरण की कोशिशों को खतरे के रूप में देखने की जरुरत है  .अम्बेडकर को भगवान बनाना उनके उस विचार की हत्या करना है जिसमे वे सदैव व्यक्तिपूजा के विरोधी रहे .उन्हें मसीहाकरण से सख्त ऐतराज़ रहा ,मगर आज हम देख रहे है कि लन्दन से लेकर मुंबई के इंदु मिल तक स्थापित किये जा रहे स्मारकों के पीछे वही हीरो वर्सिपिंग का ही अलोकतांत्रिक विचार काम कर रहा है .कहीं ऐसा ना हो कि अम्बेडकर के विचारों को पूरी तरह दफन करते हुए कल उनके मंदिर बना दिये जाये ,उन्हें विष्णु का ग्यारहवां अवतार घोषित कर दिया जाये और मंदिरों में पंडित लोग घंटे घड़ियाल बजा कर आरतियाँ उतारने लगे .यह खतरा इसलिये बढ़ता जा रहा है क्योंकि कोई उन्हें आधुनिक मनु तो कोई राष्ट्रऋषि और कोई जहर पीनेवाला नीलकंठ बताने पर उतारू है .

आज सब लोग एक रस्म अदायगी की तरह डॉ अम्बेडकर की प्रशंसा में लगे है ,पर 26 नवम्बर 1949 को संविधान सौंपते हुए उनके द्वारा कही गयी बात पर चर्चा नहीं हो रही है कि आर्थिक एवं सामाजिक गैर बराबरी मिटाये बगैर यह राजनीतिक समानता स्थायी नहीं हो सकती है .काश ,इस विषय पर देश की संसद विचार विमर्श करती ,मगर अफ़सोस कि अम्बेडकर की व्यक्ति पूजा चालू है ,उनका अनथक गुणगान जारी है. बड़ी ही चालाकी से उनके विचारों को दरकिनार किया जा रहा है .एक राष्ट्र के नाते बाबा साहब जो चाहते थे क्या हम वो लक्ष्य प्राप्त करने में सफल रहे है ? इस सवाल पर मेरे देश की संसद मौन है !

-    भंवर मेघवंशी

( स्वतंत्र पत्रकार )