Monday, February 24, 2014

                           भाड़ में जाये ऐसे दलित नेता !

देश मे दलित बहुजन मिशन  के दो मजबूत स्तम्भ अचानक ढह गये, एक का मलबा भाजपा मुख्यालय में गिरा तो दूसरे का एनडीए में, मुझे कोई अफसोस नहीं हुआ, मिट्टी जैसे मिट्टी में जा कर मिल जाती है, ठीक वैसे ही सत्ता पिपासु कुर्सी लिप्सुओं से जा मिले। वैसे भी  इन दिनों भाजपा में दलित नेता थोक के भाव जा रहे है, राम नाम की लूट मची हुई है, उदित राज (रामराज), रामदास अठावले, रामविलास पासवान जैसे तथाकथित बड़े दलित नेता और फिर मुझ जैसे सैकड़ों छुटभैय्ये, सब लाइन लगाये खड़े है कि कब मौका मिले तो सत्ता की बहती गंगा में डूबकी लगा कर पवित्र हो लें।

एक तरफ पूंजीवादी ताकतों से धर्मान्ध ताकतें गठजोड़ कर रही है तो दूसरी तरफ सामाजिक न्याय की शक्तियां साम्प्रदायिक ताकतों से मेलमिलाप में लगी हुई है, नीली क्रान्ति के पक्षधरों ने आजकल भगवा धारण कर लिया है, रात दिन मनुवाद को कोसने वाले ’जयभीम’ के उदघोषक अब ’जय सियाराम’ का जयघोष करेंगे। इसे सत्ता की भूख कहे  या समझौता अथवा राजनीतिक समझदारी या शरणागत हो जाना ?

आरपीआई के अठावले से तो यही उम्मीद थी, वैसे भी बाबा साहब के वंशजो ने बाबा की जितनी दुर्गत की, उतनी तो शायद उनके विरोधियों ने भी नहीं की होगी, सत्ता के लिये जीभ बाहर निकालकर लार टपकाने वाले दलित नेताओं ने महाराष्ट्र के मजबूत दलित आन्दोलन को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और हर चुनाव में उसे बेच खाते है। अठावले जैसे बिकाऊ नेता कभी एनसीपी, कभी शिव सेना तो कभी बीजेपी के साथ चले जाते है, इन जैसे नेताओं के कमीनेपन की तो बात ही छोडि़ये, जब क्रान्तिकारी कवि नामदेव ढसाल जैसे दलित पैंथर ही भीम शक्ति को शिवशक्ति  में विलीन करने जा खपे तो अठावले फठावले को तो जाना ही है।

रही बात खुद को आधुनिक अम्बेडकर समझ बैठै उतर भारत के बिकाऊ दलित लीडरों की, तो वे भी कोई बहुत ज्यादा भरोसेमंद कभी नहीं रहे, लोककथाओं के महानायक का सा दर्जा प्राप्त कर चुके प्रचण्ड अम्बेडकरवादी बुद्ध प्रिय मौर्य पहले ही सत्ता  के लालच में गिर कर गेरूआ धारण करके अपनी ऐसी तेसी करा चुके है, फिर उनकी हालत ऐसी हुई कि धोबी के प्राणी से भी गये बीते हो गये, अब पासवान फिर से पींगे बढाने चले है एनडीए से। इन्हें रह रह कर आत्मज्ञान हो जाता है, सत्ता  की मछली है बिन सत्ता  रहा नहीं जाता, तड़फ रहे थे, अब इलहाम हो गया कि नरेन्द्र मोदी सत्तासीन हो जायेंगे, सो भड़वागिरी करने चले गये वहाँ, आखिर अपने नीलनैत्र पुत्ररतन चिराग पासवान का भविष्य जो बनाना है, पासवान जी, जिन बच्चों का  बाप आप जैसा जुगाड़ू नेता नहीं, उनके भविष्य का क्या होगा ? अरे दलित समाज ने तो आप को माई बाप मान रखा था, फिर सिर्फ अपने ही बच्चे की इतनी चिन्ता क्यों ?  बाकी दलित बच्चों की क्यों नहीं ? फिर जिस वजह से वर्ष 2002 में आप एनडीए का डूबता जहाज छोड़ भागे, उसकी वजह बने मोदी क्या अब पवित्र हो गये ? क्या हुआ गुजरात की कत्लो गारत का, जिसके बारे में आप जगह-जगह बात करते रहते थे। दंगो के दाग धुल गये या ये दाग भी अब अच्छे लगने लगे ? लानत है आपकी सत्ता  की लालसा को, इतिहास में दलित आन्दोलन के गद्दारों का जब भी जिक्र चले तो आप वहाँ रामविलास के नाते नहीं भोग विलास के नाते शोभायमान रहे, हमारी तो यही शुभेच्छा आपको।

एक थे रामराज, तेजतर्रार दलित अधिकारी, आईआरएस की सम्मानित नौकरी, बामसेफ की तर्ज पर एससी एसटी अधिकारी कर्मचारी वर्ग का कन्फैडरेशन बनाया, उसके चेयरमेन बने, आरक्षण को बचाने की लड़ाई के योद्धा बने, देश  के दलित बहुजन समाज ने इतना नवाजा कि नौकरी छोटी दिखाई पड़ने लगी, त्यागपत्रित हुये, इण्डियन जस्टिस पार्टी बनाई, रात दिन पानी पी पी कर मायावती को कोसने का काम करने लगे, हिन्दुओं के कथित अन्याय अत्याचार भेदभाव से तंग आकर बुद्धिस्ट हुये, रामराज नाम हिन्दू टाइप का लगा तो सिर मुण्डवा कर उदितराज हो गये। सदा आक्रोशी, चिर उदास जैसी छवि वाले उदितराज भी स्वयं को इस जमाने का अम्बेडकर मानने की गलतफहमी के शिकार  हो गये, ये भी थे तो जुगाड़ ही, पर बड़े त्यागी बने फिरते , इन्हें लगता था कि एक न एक दिन  सामाजिक क्रांति कर देंगे, राजनीतिक क्रान्ति ले आयेंगे, देश  दुनिया को बदल देंगे, मगर कर नहीं पाये, उम्र निरन्तर ढलने लगी, लगने लगा कि और तो कुछ बदलेगा नहीं खुद ही बदल लो, सो पार्टी बदल ली और आज वे भी भाजपा के हो लिये।

माननीय डाॅ. उदित राज के चेले-चपाटे सोशल  मीडिया पर उनके भाजपा की शरण में जाने के कदम को एक महान अवसर, राजनीतिक बुद्धिमता और उचित वक्त पर उठाया गया उचित कदम साबित करने की कोशिशो  में लगे हुये है। कोई कह रहा है - वो वाजपेयी ही थे जिन्होेंने संविधान में दलितों के हित में 81, 82, 83 वां संशोधन  किया था, तो कोई दावा कर रहा है कि अब राज साहब भाजपा के राज में प्रौन्नति में आरक्षण, निजी क्षैत्र में आरक्षण जैसे कई वरदान दलितों को दिलाने में सक्षम हो जायेंगे, कोई तो उनके इस कदम की आलोचना करने वालों से यह भी कह रहा है कि उदितराज की पहली पंसद तो बसपा थी, वे एक साल से अपनी पंसद का इजहार कुमारी मायावती तक पंहुचाने में लगे थे लेकिन उसने सुनी नहीं, बसपा ने महान अवसर खो दिया वर्ना ऐसा महान दलित नेता भाजपा जैसी पार्टी में भला क्यों जाता ?  एक ने तो यहाँ तक कहा कि आज भी मायावती से सतीश  मिश्रा वाली जगह दिलवा दो, नियुक्ति पत्र ला दो, कहीं नहीं जायेंगे उदित राज ! अरे भाई, सत्ता  की इतनी ही भूख है तो कहीं भी जाये, हमारी बला से भाड़ में जाये उदित राज! क्या फरक पड़ेगा अम्बेडकरी मिशन को ? बुद्ध, कबीर, फुले, पेरियार तथा अम्बेडकर का मिशन  तो एक विचार है, एक दर्शन  है, एक कारवां हैं, अविरल धारा है, लोग आयेंगे, जायेंगे, नेता लूटेंगे, टूंटेंगे, बिकेंगे, पद और प्रतिष्ठा के लिये अपने अपने जुगाड़ बिठायेंगे, परेशानी सिर्फ इतनी सी है कि रामराज से उदितराज बने इस भगौड़े दलित लीडर को क्या नाम दे , उदित राज या राम राज्य की ओर बढ़ता रामराज अथवा भाजपाई उदित राम ! एक प्रश्न   यह भी है कि बहन मायावती के धुरविरोधी रहे उदित राज और रामविलास पासवान सरीखे नेता भाजपा से चुनाव पूर्व गठबंधन कर रहे हैं अगर चुनाव बाद गठबंधन में बहनजी भी इधर आ गई तो एक ही घाट पर पानी पियोगे प्यारों या फिर भाग छूटोगे ?

इतिहास गवाह है कि बाबा साहब की विचारधारा से विश्वासघात करने वाले मिशनद्रोही तथा कौम के गद्दारों को कभी भी दलित बहुजन मूल निवासी समुदाय ने माफ नहीं किया। दया पंवार हो या नामदेव ढसाल, संघप्रिय गौतम, बुद्धप्रिय मौर्य  अथवा अब रामदास अठावले, रामविलास पासवान तथा उदित राज जैसे नेता, इस चमचायुग में ये  चाहे कुर्सी के खातिर संघम् (आरएसएस) शरणम् हो जाये, हिन्दुत्व की विषमकारी और आक्रान्त राजनीति के तलुवे चाटे मगर दलित बहुजन समाज बिना निराश  हुये अपने आदर्श  बाबा साहब डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों की रोशनी  में आगे बढ़ेगा, उसे अपने समाज के बिकाऊ नेताओं के ’भगवा’ धारण करने का कोई अफसोस नहीं होगा, अफसोस तो इन्हीं को करना है, रोना तो इन्ही नेताओं को है। हाँ, यह दलित समाज के साथ धोखा जरूर है, मगर काला दिन नहीं, दोस्तों वैसे भी मोदी की गोदी में जा बैठे गद्दार और भड़वे नेताओं के बूते कभी सामाजिक परिवर्तन का आन्दोलन सफलता नहीं प्राप्त करता, ये लोग अन्दर ही अन्दर हमारे मिशन  को खत्म कर रहे थे, अच्छा हुआ कि अब ये खुलकर हमारे वर्ग शत्रुओं के साथ जा मिलें। हमें सिर्फ ऐसे छद्म मनुवादियों से बचना है ताकि बाबा साहब का कारवां निरन्तर आगे बढ़ सके और बढ़ता ही रहे ..... !

-भँवर मेघवंशी
(लेखक दलित आदिवासी एवं घुमन्तु वर्ग के प्रश्नो  पर राजस्थान में सक्रिय है तथा स्वतंत्र पत्रकार है)

Monday, February 10, 2014

आज के कन्हैया को तो अहीरों ने मार डाला !







अपनी शूरवीरता  के लिये प्रसिद्ध चित्तौडगढ जिले के गंगरार थाना क्षैत्र के मण्डपिया गांव का 20 वर्षीय पप्पूलाल सालवी बचपन से ही अपने नाना कालूराम के साथ रह कर पला और बडा हुआ, घर में भजन सत्संग का वातावरण था, कबीर से लेकर निरंकारी तक निगुर्ण की अजस्त्र धारा बहती थी, पप्पू की वाणी का माधुर्य सबको मोह लेता था, सिर्फ 20 बरस उम्र लेकिन साधु संतों सा जीवन, सत्संगों में भजन और घर पर भी ज्ञान चर्चा , 2 वर्ष पूर्व उसने घर छोडकर अपने नाना के खेत में ही एक कुटिया बना ली , वही रहने लगा, एक वीतराग दरवेश  की भांति, अन्न आहार भी त्याग दिया, सिर्फ दूध और फल खाता , जवानी की दहलीज पर कदम रखता एक युवा संत , सुन्दर मनोहारी व्यक्तित्व  का धनी और कण्ठ में कोकिला सी आवाज, प्यार से लोग उसे पप्पू महाराज कहते और भजन गाने के लिये दूर-दूर तक सतसंगों में आमंत्रित करते , इस युवा संत के विभिन्न समाजों में कई  शिष्य-शिष्याएं  भी बन गये थे, लेकिन पप्पू महाराज शायद जगत को मिथ्या मानने वाले हवाइ विचारों से ही अवगत था , उसे जगत में जाति के कड़वे सच का ज्ञान नहीं था कि कोइ भी दलित चाहे वह संत बने या साधु , राजा बने या महाराज, चपरासी बने या कलेक्टर , व्यवसायी बने या विदूषक , मजदूर बने या कलाकार, उसकी औकात बढती नहीं है, चार बात किताबी ज्ञान की दोहरा देने और मीठी आवाज में भजन गा देने मात्र से जाति का कलंक कहां मिटता है, इस देश में ? भगवा धारण कर लेने से एक दलित को कौन संत मान लेता है इस मुल्क में ?

एक दलित जन्म से लेकर मरने तक सिर्फ और सिर्फ दलित ही रहता है, वह कितना भी प्रतिभावान क्यों ना हों, उसका कथित नीची जाति का होना , उसके लिये आजीवन अभिशाप होता है, क्योकि इस देश में जाति कभी भी पीछा नहीं छोडती है, जन्म से पहले और मरने के बाद तक जहां सारे कर्मकाण्ड जाति पर आधारित होते है, वहां पर दलित युवा संत पप्पू महाराज को कौन महाराज मानता ? आखिर था तो वह भी नीच जुलाहों का ही बच्चा ना ? जिसके पूर्वज कपडे बुन बुनकर बेचते थे, भले ही अब बुनकर , सूत्रकार, सालवी लिखने लगे हो लेकिन सवर्ण हिन्दुओं की नजर में तो वे नीच ही थे और नीच ही रहेगें , भले ही सरकार उन्हे कितना ही ऊंचा उठाये, समाज उन्हे कभी ऊंचा नहीं उठने देगा। तो इन पप्पू महाराज की खेत की पडौसन थी एक अहीर युवती, पप्पू महाराज अगर 20 के थे तो यह लडकी है 18-19 की, बचपन में शादी हो गइ थी , पति से खट-पट हुई  और रूठ कर पीहर आ बसी वापस, खेत पर काम से फुर्सत मिलती तो पप्पू महाराज की कुटिया में और भक्तों के साथ सुस्ताने चली आती थी , एक संत था तो दसरी सतायी  हुई , दोनों ही इस जगत से खफा, कब गुरू शिष्य बने , किसी को क्या मालूम ? कई  और चेले थे , वैसे ही वो भी थी , पर नारी का ह्रदय गुरू के प्रति भी प्रेम से सरोबार ही था , नजदीकियां इतनी कि गांव के बहुसंख्यक एवं प्रभावशाली  अहीरों को चुभने लगी, पहले तो चेतावनी दी गयी पर बात बनी नहीं , आखिर किसी नीच जाति के एक छोकरे की चेली बन जाये अहीरों की लडकी, कितनी शर्म की बात थी यह ?

         हालात ऐसे विकट हुए कि संत महाराज को गांव छोडना पडा , ननिहाल का घर छोड पप्पू महाराज प्रवास को निकल गये, तीन दिन बाद शिष्या भी घर से गायब हो गयी , महाराज के नाना कालुलाल सालवी के घर आ धमके अहीर लोग , बोले - तुम्हारा पप्पूलाल और हमारी लडकी दोनों कहीं चले गये है । हमारे टुकडों पर पलने वाले नीचों, तुम्हारी यह हिम्मत हो गइ कि तुम्हारे लौण्डे हमारी लडकियों को भगा ले जाये, हम उस हरामजादे को चारों तरफ ढूंढ रहे है , जैसे ही मिलेगा , उसके शरीर  के टुकडे -टुकडे कर देगें । अहीरन  के काका  डालू राम अहीर ने तो सरेआम धमकी दी कि-चाहे मुझे जेल ही हो जाये , पर तुम्हारा तो बीज तक नष्ट कर दूगां। घबरा गये महाराज के मण्डपिया के दलित सालवी, उन्होनें हाथ पांव जोडे और कहां कि अगर हमारे लडके ने गलती की है तो हम सजा देगें उसे, ढूंढेगें, वापस लायेगें, पर अहीर तो मरने-मारने पर आमादा थे , वे पप्पू के नाना कालूलाल से पप्पू का फोटो तथा मोबाइल नं. 8094836138 लिखवाकर ले गये। इस बीच गांव में शांति रही , ना तो अहीरों ने पप्पू महाराज की कोइ जानकारी ली और ना ही कोई  पूछताछ की, नारायण अहीर जो कि गांव का ही निवासी है, उसने जरूर पप्पू के ननिहाल के घर आकर कहा कि तुम्हारा बच्चा 6 महीने तक नहीं आयेगा

          कालूलाल को पप्पू का आखरी संदेश  भी यही मिला कि वह कहीं बाहर है और आइसक्रीम की लारियों पर काम करेगा, फिर लौट आयेगा, लेकिन गांव से गायब हुई  अहीर लडकी के बारे मे उसने कुछ भी नहीं बताया , अब महाराज की कुटिया खाली थी , ना गुरू था और ना ही चेली , अन्य शिष्य भी आते ना थे , सब कुछ पूर्ववत सामान्य हालातों में चल रहा था कि 11 जनवरी 2014 की रात करीब 12 बजे मण्डपिया के ही निवासी उदयलाल सालवी ने पप्पू के नाना कालूलाल के घर आकर जानकारी दी की उसे अभी खबर मिली है कि मेडीखेड़ा फाटक के पास एक लाश  मिली है जिसे पुलिसवाले पप्पू की बता रहे है । यह सुनकर पप्पू के परिवार में तो कोहराम मच गया , पप्पू के नाना कालूलाल की हालत पागलों जैसी हो गयी  , गांव से पप्पू का मामा हीरालाल, नंदलाल, किशन  तथा पप्पू के पैतृक गांव आकोडिया से उसके पिता लादूलाल, मोहनलाल तथा भंवरलाल सालवी आदि घटना स्थल पर पहुंचे, उन्होनें मौके पर देखा कि पप्पू की लाश  के टुकडे हो गये है, उसका वह हाथ गायब था जिस पर उसका नाम गुदा हुआ था , एक पैर कटा हुआ था , उसके गुप्तांग बेरहमी से काट डाले गये थे, शरीर  पर जगह - जगह चोटों के निशान थे, प्रथम दृष्टया ही मामला हत्या का प्रतीत हो रहा था , लेकिन वहां मौजूद चंदेरियां थाने की पुलिस ने बताया कि इसने ट्रेन के सामने कूदकर आत्महत्या कर ली है, घटना स्थल पर अहीरों की उक्त लडकी और पप्पू के फोटों तथा प्रेम पत्रनुमा सुसाइड नोट भी मिला है , पप्पू के परिजनों से पुलिस द्वारा खाली कागजों पर दस्तखत करवाने गये , पप्पू का शव लेकर उसके परिजन पैतक गांव आकोडिया पहुचें ,जहां पर उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया ।

मृतक के मामा हीरालाल सालवी द्वारा एक अर्जी पुलिस अधीक्षक को देकर पप्पू की हत्या की आशंका जताते हुए जांच की मांग की गइ लेकिन इस प्रार्थना पत्र को पुलिस द्वारा सुना ही नहीं गया, क्योकि अहीर लडकी का मामा पुलिस में मुलाजिम है , बताया जाता है कि वह कोई  कार्यवाही नहीं होने दे रहा है , जब मामला ही दर्ज नहीं हुआ तो प्रार्थी हीरालाल ने न्यायालय की शरण ली , इस्तगासे के जरिये अब जाकर मामला दर्ज किया गया है, लेकिन इज्जत के नाम पर , जाति के नाम पर प्रेम करने वालों की हत्या कर देना भारतीय समाज में मर्दानगी का काम माना जाता है, खास तौर पर अगर लडका दलित हो और लडकी सवर्ण हो तो उनका प्रेम नाकाबिले बर्दाश्त बात है। आखिर कोई  दलित लड़का किसी सवर्ण लडकी को शिष्या बनाये या प्यार करे, यह दुनिया के सबसे सहिष्णु सवर्ण हिन्दू समाज को कैसे सहन हो सकता है ? वैलेन्टाइन डे का बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे इस देश  के लोगों से मुझे सिर्फ इतना सा कहना है कि प्रेम के देवता कृष्ण जो कि खुद एक अहीर थे, उसी के वंशज होने का दम भरने वाले अहीरों ने आज के इस कन्हैया को अपने ही हाथों से पूरी बेरहमी से मार डाला है, और अब कोई  कार्यवाही नहीं होने दे रहे है। अब सिर्फ सवाल ही सवाल है, जिनका कोई  जवाब नहीं है सब तरफ अजीब सी खामोशी  है, एक सर्द सा सन्नाटा है और मरघट की डरावनी शांति फैल रही है , क्योकि हर युग में प्रेम करने की सजा सिर्फ मौत होती है, चाहे वह कबीलाई  तालिबान के हाथों हो या जाति, गौत्र की खांप पंचायतों के द्वारा , प्रेमियों को तो मरना ही है ताकि प्रेम जिन्दा रह सके ।


- भंवर मेघवंशी
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)

Saturday, February 8, 2014

वसुंधरा जी,राजस्थान मे आपका राज है या पोपा बाई का ?

25 जनवरी की सुबह सुबह भीलवाडा जिले के कोटडी कस्बे के सोपुरा जाटों के गाँव की दलित महिला लाली बलाई अपने घर पर चूल्हा जलाने की तैयारी  कर रही थी कि  अचानक गाँव की ही दबंग जाट समाज की महिला मनभर उसके यहाँ आ धमकी,मनभर जाट के हाथ मे बच्चों के मलमूत्र से भरी एक थैली थी ,उसने आते ही गंदगी की यह थैली दलित महिला लाली के घर के दरवाजे पर उंड़ेल दी ओर चिल्लाने लगी कि  तू ढेड, बलाईटी, सुगली औरत है ओर डाकन है , तेरी वजह से मेरे पशु बीमार रहते है,तू मेरी भेंस को खा गयी है,.जब दलित महिला लाली ने अपने घर के दरवाजे पर गंदगी डालने का विरोध किया तो मनभर जाट बोली कि तुम दलित तो हो ही गंदे, तुम्हारे पूर्वज हमारी गंदगी साफ करते थे ओर तुम्हारा भी यही काम  है ,तुम्हे भी यही करना होगा . लाली  बलाई ने मनभर जाट के इस प्रकार के अपमान जनक आरोपों का प्रतिरोध किया तथा उसे ज़बान संभाल कर बात करने की नसीहत दी ,इससे मनभर और  भड़क गयी,उसने अपने पिता सुआ लाल,मा प्रेम ओर बहन गमांन  को भी बुला लिया ओर दलितों को जमकर गाली गलोज करना प्रारंभ कर दिया .इतना ही नही बल्कि उसने लाली बलाई को इंगित करके सरेआम कहा की तू डाकन है ,तेरी वजह से ही मेरी भेंसे मरती है,हमारी गंदगी तुम्हारे घर मे डालने से ही हमारे पशुओं की बीमारी ठीक होगी .दलित लाली ने जब इस बात का विरोध किया तो उक्त  तीनों जाट महिलाओं ने उसकी चोटी  पकड़ कर खींचना शुरू कर दिया ओर उसके कपड़े फाड़ने लगी, इस जाट परिवार का कहना था कि  लाली बलाई मे डायन है ,उसे नंगा करके गाँव मे घुमाना पड़ेगा तभी उसके शरीर से डाकन निकलेगी, गाँव के इस जाट परिवार  का यह भी कहना था  कि  लाली जैसी डायन  औरतों का इस प्रकार से इलाज करने से ही गाँव के अन्य दलित औकात मे रहेंगे ,नही तो उनको गाँव छुड़वा दिया जाएगा, गौरतलब है कि  इसी सोपुरा जाटों के गाँव का रायमल बलाई कुछ माह पहले ही इस गाँव को इसी प्रकार के अत्याचारों से तंग आकर छोड कर  गया था, अब ये लोग लाली के परिवार को भी  गाँव से भगाना चाहते थे, करीब आधे घंटे तक लाली के साथ अभद्रता, खींचतान, मारपीट चली, किसी भी दलित की हिम्मत नही थी की वो लाली को इन आततायी औरतो  के चंगुल से छुड़वा सके, जो भी लाली को बचाने आता ,उसी को जान के लाले पड जाते ,सो कोई भी नही आया बीच बचाव करने, अंतत:  जब सोपुरा जाटों के इन कतिपय अत्याचारियो  ने अपनी  मनमानी पूरी  कर ली तब वो  लाली  को यह धमकी दे कर छोड़ गये कि  यदि तुमने हमारी कहीं भी शिकायत की तो हम तुझे ओर तेरे परिवार को जिन्दा जला देंगे, इतना कह कर वो चले गये और  लाली पर पूरी नज़र रखते  रहे कि  कहीं वोर् कायवाही करवाने तो नही जा रही है, घटना के 5 दिन बाद किसी तरह चोरी छुपे लाली बलाई रात को साढ़े 8 बजे कोटडी  थाने पंहुची ओर मामले की लिखित जानकारी पुलीस को दी .दलित महिला लाली ने पुलीस से प्रार्थना  की कि  मै ,मेरा पति ओर मेरा बच्चा बहुत  डरे हुए है, हमें सुरक्षा दी जाए,हमारी जान ख़तरे मे है ,गाँव के दबंग लोग या तो हमें गाँव से भगा  देंगे या जान से मार डालेंगे .पर पुलीस ओर प्रशासन की संवेदनशीलता देखिए कि  घटना के 15दिन बीत  जाने के बाद भी आज तक पुलीस ने ना तो रिर्पोट  दर्ज  की  और  ना ही लाली बलाई के परिवार को कोई सुरक्षा दी गयी है, पुलीस दलित पीडिता की रिपोर्ट  के आधार पर सिर्फ  इतना कर रही है कि लाली  बलाई ओर मनभर जाट के परिवार  को आमने सामने बिठा कर समझौता  करवाने मे लगी हुई है, निरीह दलितों की कोई नही सुनता है,ना तो कोटडी थाना सुनता है ओर ना ही सकल हिंदू समाज,सोपुरा के दलितो की आवाज़ ना तो प्रदेश भाजपा मुख्यालय पंहुचती है ओर ना ही नागपुर के संघ कार्यालय  तक ,जिला मुख्यालय  तक भी पंहुच जाए तो गनीमत ही  है ,बलाई  समाज के ठेकेदार भी आजकल मौन है,राजस्थान की राज्यपाल महिला है ओर मुख्यमंत्री भी, लेकिन कोटडी की दलित महिला लाली बलाई  की कोई सुनवाई करने को तैयार  नही है,ऐसे हालात में  सूबे की वजीरे आला से यह सवाल पूंछने  का मन  करता है कि  वसुंधरा जी, राजस्थान मे आपका राज है या पोपा बाई का ?

-भंवर मेघवंशी 
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)